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कहते हैं? मिलिन्द ने कहा- भगवन् ! ये सब रथ के भाग हैं, रथ नहीं ।
तब नागसेन ने कहा- उसी प्रकार से एक साथ उपस्थित स्कन्धों का नाम ही सत् या आत्मा है । ९
बौद्ध दर्शन में क्षणिक संवेदनाओं को ही आत्मा कहते हैं। बौद्धों के अनुसार, इनके अतिरिक्त आत्मा की पृथक् सत्ता उपलब्ध नहीं होती । "
हीनयानी वसुबन्धु ने स्पष्ट कहा है कि पञ्चस्कन्धी के अलावा आत्मा कोई तत्त्व नहीं है । १
बुद्ध ने बिना किसी आधार के भी संसार की अविच्छिन्नता की व्याख्या कारणकार्यभाव से की है। इस कारणकार्यभाव को ही संसार की अविच्छिन्नता का कारण बताया । “परिवर्तन युक्त तत्त्व अस्तित्व रखता है ।" यह सत्य है कि जो कुछ विद्यमान है वह सब कारणों एवं अवस्थाओं से ही प्रादुर्भूत हुआ है और प्रत्येक स्थिति में अस्थिर है । १२
बुद्ध ने यह भी स्पष्ट किया कि चेतना मात्र क्षणिक है, वस्तुएं नहीं। यह प्रत्यक्ष है कि यह शरीर एक वर्ष, सौ या इससे भी अधिक समय तक रह सकता है, परन्तु जिसे मन, बुद्धि, प्रज्ञा या चेतना कहते हैं, वह दिन-रात एक प्रकार के चक्र के रूप में परिवर्तित होती रहती है। १३
बुद्ध न आत्मा की स्वीकृति देते हैं न आत्मा से संबन्ध रखने वाली अन्य किसी वस्तु की। उनके अनुसार आत्मा की नित्यता, अपरिवर्तनशीलता आदि मूर्खो की बकवास है । ४
बुद्ध ने इस पुल को क्षणिक और नाना कहा है। यह चेतन तो है, पर मात्र चेतन है, ऐसा नहीं है । वह 'नाम' और 'रूप' • इन दोनों का समुदाय रूप है ।
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८९. मिलिन्द २.१.१
९०. मज्झिमनिकाय उपरिपण्णासक २.२.१-६
९१. अभिधर्मकोष ३.१८
९२. भा. दर्शन भाग १. डॉ. राधा. पृ. ३४१
९३. संयुक्त २-९६
९४. मज्झिमनिकाय १.१३८
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