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वैशेषिक सूत्र में आत्मा का अस्तित्व अनुमान प्रमाण से सिद्ध किया गया है। प्राणापान, निमेषोन्मेष, जीवन, इन्द्रियान्तर-संचार, सुख, दुःख, इच्छा, द्वेष, संकल्प आदि को आत्मा के लिंग बताते हुए इन्हीं से आत्मा का अस्तित्त्व सिद्ध किया गया है। विशेष विवेचन के लिए एन. के. देवराज द्वारा लिखित भारतीय दर्शन पृ. ३०१-८.१ देखना चाहिए। - इसी प्रकार न्याय सूत्रकार ने भी इच्छा, द्वेष, प्रयत्न, सुख, दुःख और निर्णयात्मक ज्ञान के हेतुओं द्वारा आत्मा की सत्ता का अनुमान किया है। गौतम ऋषि अनुमान के अतिरिक्त शास्त्रीय प्रमाण भी देते हैं।७८
.. ___ आत्मा का मानस-प्रत्यक्ष होता है या नहीं, न्याय दर्शन में इसके विषय में मतभेद है। न्यायसूत्र में आत्मा के अनुमान की चर्चा है, प्रत्यक्ष की नहीं। ७९ न्यायसूत्र के भाष्यकार वात्स्यायन ने आत्मा को अलौकिक प्रत्यक्ष का विषय कहा है, लौकिक प्रत्यक्ष का नहीं।
वैशेषिक दर्शन के प्राचीन साहित्य के अनुसार भी भाष्यकार वात्स्यायन द्वारा प्रतिपादित आत्मा के इसी योगी-प्रत्यक्ष का विषय होने के पक्ष का समर्थन होता है, परन्तु उद्योतकर, वाचस्पति मिश्र आदि ने ज्ञान आदि विशेष गुणों के साथ आत्मा का मानस-प्रत्यक्ष 'अहम् पदार्थ के रूप में माना है।
बौद्ध दर्शन का अनात्मवाद :
. उपनिषदों ने आत्मा और आत्मा से संबन्धित विद्या को प्रमुख तत्त्व मानकर उसी की प्राप्ति को जीवन का लक्ष्य बना दिया था। बौद्ध दर्शन ने तेजी से पनपती इस आत्मवाद की प्रवृत्ति को रोकने के लिए अनात्मवाद का सिद्धान्त दिया । बुद्ध ने रूप, वेदना, संज्ञा, संस्कार, विज्ञान और इन्द्रियों पर एवं इन्द्रियों के विषयों पर ७६. वै.सू. ३.२.४-१३ ७७. न्यायसूत्र ३.१.१० ७८. भारतीय दर्शन :- डॉ. राधाकृष्णन् भाग २ पृ. १४५ ७९. न्यायभाष्य १.१.१० ८०. न्यायभाष्य १.१.३ ८१. भारतीय दर्शन:- डॉ. एन. के. देवराज पृ. ३०० ८२. न्यायवा. पृ. ३४१ .८३. ता. टी. ५०१
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