________________
छान्दोग्य उपनिषद् में तो यहाँ तक कह दिया गया है कि “विश्व में सब कुछ प्राण है। इन्द्रियाँ और प्राण का तादात्म्य भी कर दिया गया। इन्द्रियों को भी प्राण कहते हैं।५६
दार्शनिक इस प्राणात्मवाद से भी संतुष्ट नहीं हुए। मनोमय आत्मा:___ आत्मा संबन्धी विचारणा और उसे प्राप्त करने में ऋषि निरन्तर प्रयत्नशील थे। उन्हें ऐसा आभास हुआ कि मन के अभाव में प्राण और इन्द्रियाँ सब व्यर्थ हैं। मन का संपर्क होने पर ही इन्द्रियाँ अपने-अपने विषयों को ग्रहण कर सकती हैं; यदि मन अनुपस्थित हो तो इन्द्रियों की उपस्थिति सार्थक नहीं है । तब प्राणमय आत्मा के स्थान पर मनोमय आत्मा की सत्ता स्वीकार की गयी।५७
मन की सत्ता की उत्कृष्टता को स्वीकार करते हुए उसे परम ब्रह्मसम्राट् तक कह दिया। छान्दोग्य उपनिषद् में भी उसे ब्रह्म कहा है।५९ . प्रज्ञा विज्ञानात्मा:
कौषीतकी उपनिषद् में प्राण को प्रज्ञा और प्रज्ञा को प्राण कहा है। इसी में आगे प्रज्ञा का महत्त्व स्वीकार करते हए कहा गया है कि प्रज्ञा के अभाव में इन्द्रियाँ और मन निरर्थक हैं। इन्द्रियों और मन की अपेक्षा प्रज्ञा का महत्त्व अधिक
__विज्ञानात्मा को मनोमय आत्मा की अन्तरात्मा के रूप में बताया है। ऐतरेय उपनिषद में प्रज्ञान ब्रह्म के पर्यायवाची शब्दों में मन भी है।६३ प्रज्ञा और प्रज्ञान६४ एक ही हैं। यहाँ प्रज्ञान का पर्याय विज्ञान भी बताया है।६५ ५६. बृहदारण्यक उप. १.५.२१ ५७. तैतिरीय उपनि. २.३ ५८. बृहदारण्यकोपनिषद् ४.१.६ ५९. छान्दोग्योप. ७.३.१ ६०. कौषितकी उप. ३.२.,३.३.३.३.३४. ६१. कौषितकी उप. ३.६.७ ६२. तैतिरीय उपनिषद् २.४ ६३. ऐतरेय उपनि. ३.२ ६४. ऐतरेय उप. ३.३ ६५. ऐतरेय उप. ३.३
७७
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org