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आकार नहीं होता । शरीर का कर्ता आत्मा है ।२६ विषय और इन्द्रियों के मध्य कोई ऐसा तत्त्व अवश्य होना चाहिए जो ग्राहक हो, और वह आत्मा है ।२७
जिस प्रकार भोजन, वस्त्र आदि का कोई भोक्ता अवश्य होता है, उसी प्रकार शरीर का भी कोई भोक्ता होना चाहिये, और वह भोक्ता आत्मा ही हो सकता हैं।२८
इसी प्रकार शरीरादि के संघात रूप में,२९ संशय के रूप में,३० अजीव के प्रतिपक्षी के रूप में, आत्मा का अस्तित्व है।
अन्य आचार्यों के अनुसार आत्मसिद्धिः___ श्वासोच्छ्वास के रूप में एवं प्राणापान के कारण आत्मा का अस्तित्व
आत्मा का प्रत्यक्ष होता है। इन्द्रिय निरपेक्ष आत्मजन्य केवलज्ञान रूप सकल प्रत्यक्ष के द्वारा शुद्धात्मा का प्रत्यक्ष होता है। देश प्रत्यक्षः अवधिज्ञान और मनःपर्यव ज्ञान के द्वारा कर्म-नोकर्म से युक्त आत्मा का प्रत्यक्ष होता है ।२३
इन्द्रियों से प्राप्त विभिन्न ज्ञानों में आत्मा ही एकसूत्रता स्थापित करती हैं। किसी व्यक्ति को देखने मात्र से प्रियता और अप्रियता का भाव अचानक नहीं उठता, कहीं न कहीं उसके कारण सुख-दुःख का अनुभव हुआ होगा, इस प्रवृत्ति से भी आत्मा का अस्तित्व सिद्ध है।३५
२६. वही १५६७ २७. वही १५६८ २८. वही १५६९ २९. वही १५७० ३०. वही १५७१ ३१. रा. व. ५.१९.३८ पृ. ४७३ ३२. स्याद्वादम. १७. १७४ ३३. रा. वा. २८.१८.१२२. ३४. रा.वा. २.८१९ पृ. १२२. ३५. न्याय. ६८. ६९.७१ पृ.३९
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