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समुदायवाद भी कहा जाता है।४८ ____ परिणमन अस्तित्व का ही स्वभाव है । 'सत्' का यह लक्षण ईश्वरवादियों की मान्यता का प्रतिरोध करता है। ईश्वरवादियों के अनुसार परिणमन ईश्वर द्वारा प्रेरित है । कहा भी है- ईश्वर से प्रेरित जीव ही स्वर्ग की ओर प्रस्थान करता है। ईश्वर के सहयोग बिना जीव सुख-दुःख को भी नहीं प्राप्त कर सकता। प्राणी के प्रयत्नों द्वारा होने वाले परिवर्तन को प्रयत्नजन्य और अन्य किसी द्रव्य के सहयोग बिना प्रयत्न के होने वाले को अप्रयत्नजन्य कहते हैं । वैशेषिक मात्र प्रयत्नजन्य परिणाम ही स्वीकार करते हैं।५० ___ यह प्रयत्नजन्य और अप्रयत्नजन्य परिणमन सामुदायिक और वैयक्तिक रूप से दो प्रकार का है । दूध में शक्कर मिलाने से दूध में होने वाली मधुरता की उत्पत्ति सामुदायिक प्रयत्नजन्य उत्पाद है। ___ अलग-अलग रहने वाले अवयवों को मिलाकर या जुड़े हुए अवयवों को
अलग कर जो उत्पाद और विनाश किया जाता है, वह सामुदायिक उत्पाद एवं • विनाश है; और एक ही द्रव्य के आश्रित न होने के कारण यह अपरिशुद्ध परिणमन
सामुदायिक उत्पाद और विनाश स्कन्ध सापेक्ष होने के कारण और स्कन्ध पुद्गलद्रव्य में ही संभव होने के कारण मूर्त द्रव्य में ही संभव हैं; अमूर्त में नहीं। घट-पट आदि जो भी मूर्त पदार्थ हैं, वे सभी प्रयत्नजन्य परिवर्तन हैं। बादल, पहाड़ आदि का सर्जन और विसर्जन क्रमशः वैनसिक/सामुदायिक उत्पाद एवं विनाश हैं।
बिना किसी अन्य द्रव्य से मिले अर्थात् एक स्वतन्त्र द्रव्य में जो उत्पाद या विनाश होता है, वह ऐकत्विक अप्रयत्नजन्य उत्पाद एवं विनाश है। यह स्कन्धाश्रित न होने के कारण परिशुद्ध भी कहलाता है। इसका विषय मात्र अमूर्तद्रव्य और एक-एक (स्वतन्त्र) द्रव्यरूप है। यह परिमणन आकाश, धर्म द्रव्य और अधर्म ४८. उप्पाओ दुवियाओ- अपरिसुद्धा-स.त. ३.३२ ४९. ईश्वरप्रेरितो गच्छेत्, स्वर्ग वा श्वभ्रमेव वा । अन्योजंतुरनीशोयमात्मनः सुखदुःखयोः।। __-महाभारत वनपर्व ३०.२८ । ५०. क्षित्यादयो बुद्धिमत्कृर्तकाः कार्यत्वाद् घटवदिति । उद्धृतोयम् स्याद्वम. पृष्ठ ३२
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