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द्रव्य में ही संभव है; यह प्रयत्नजन्य नहीं हो सकता, क्योंकि ये तीनों अस्तिकाय गति एवं क्रिया रहित हैं, अतः इनमें प्रयत्न का अभाव है। ... .
प्रयत्नजन्य और अप्रयत्नजन्य, इन दोनों सामुदायिक विनाशों के समुदायविभाग मात्र एवं अर्थान्तरभावप्राप्ति नाम के दो दो प्रकार हैं । सामुदायिक प्रयत्नजन्य विनाश का उदाहरण हैः प्रयत्नपूर्वक बनाये गये मकान से ईंट आदि अवयवों का अलग हो जाना । सामुदायिक अप्रयत्नजन्य विनाश का उदाहरण है: प्रकृतित: बने हुए बादलों का स्वतः ही बिखर जाना । अवयवों से अलग हुए बिना (उसी द्रव्य में) पूर्व आकार को छोड़ कर नए आकार को धारण करना प्रयत्नजन्य अर्थान्तरभाव विनाश है, जैसे-कड़े से कुंडल बनना ।५१ अप्रयत्नजन्य अर्थान्तरभावप्राप्ति का उदाहरण है भौतिक संयोग से या ऋतु परिवर्तन से बर्फ का पानी और पानी का भाप बनना ।५२ ___वाचक उमास्वाति ने एक अन्य अपेक्षा से भी परिणमन की व्याख्या की है- . किसी भी द्रव्य का स्वाभाविक परिणमन ‘पारिणामिक भाव' कहलाता है; एवं परमाणुओं के मिलने से जो परिणमन होता है, वह औदयिक भाव कहलाता है। धर्म, अधर्म, आकाश और काल में जो परिणमन होता है वह पारिणामिक है। पुद्गल द्रव्य में पारिणामिक एवं औदयिक, दोनों परिणमन होते हैं। परमाणु में पारिणामिक परिणमन होता है। स्कन्धों में रूप, रस आदि में होने वाला औदयिक परिणमन है । जीव में सभी परिणमन होते हैं ।५३ ।। द्रव्य त्रैकालिक है :___अपने परिणामी स्वभाव के कारण द्रव्यों में प्रतिक्षण परिणमन होना अवश्यम्भावी है, वे किसी भी क्षण परिणमनशून्य नहीं रह सकते । परिणमन करने पर भी वे अपनी सीमा का उल्लंघन नहीं करते। वे तद्भाव परिणमन करते हैं ।५४ अनादि काल के इस परिणमन प्रवाह में द्रव्य जितने थे, उतने ही हैं; न घटे हैं और न बढ़े हैं। ५१. सामाविओ वि समुदयकओ-पच्चओणियमा-सन्मतित. ३.३३. ५२. विगमस्स वि. एस.... भावगमणंच-स. त. ३.३४ एवं इसी पर संपादक युगल का विवेचन । ५३. भावो धर्माधर्माम्बर-भावानुगा जीवाः-प्रशमरति २०९. ५४. तद्भावः परिणामः त. सू. ५.४२
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