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- सांख्य का सृष्टि क्रम इस प्रकार स्पष्ट है-प्रकृति से महत्, महत् से अहंकार, अहंकार से मन, पाँच ज्ञानेन्द्रियाँ, पाँच कर्मेन्द्रियाँ, पाँच तन्मात्राएँ एवं पाँच महाभूत उत्पन्न होते हैं। ये चौबीस तत्त्व अचेतन हैं, फिर भी चेतन पुरुष के प्रयोजन के लिये प्रवृत्त होते हैं। पुरुष सृष्टि व्यापार से अलिप्त है; न यह विकृति है, न प्रकृति । मूलप्रकृति प्रकृति (अव्यक्त) है; महत्, अहंकार और पाँच तन्मात्राएँ, ये प्रकृति-विकृति दोनों हैं। मन, पाँच ज्ञानेन्द्रियाँ, पाँच कर्मेन्द्रियाँ
और पाँच महाभूत, ये सोलह तत्त्व मात्र विकृति हैं । ८० ... . . ___रूप, रस, गंध, स्पर्श और शब्द, ये पाँच तन्मात्राएँ हैं । इन पाँच तन्मात्राओं से अग्नि, जल, पृथ्वी, वायु और आकाश रूप पाँच महाभूतों की उत्पत्ति होती
न्याय-वैशेषिक में द्रव्य व सृष्टि:
न्याय और वैशेषिक समान तन्त्र माने जाते हैं। न्याय के अनुसार जगत् की सृष्टि तथा संहार करने वाला व्यापक, नित्य, एक, सर्वज्ञ तथा नित्यज्ञानयुक्त शिव
पृथ्वी, चन्द्र, सूर्य, नदी, समुद्र आदि सभी किसी बुद्धिमान् द्वारा निर्मित हैं, क्योंकि ये घट-पट की तरह कार्य हैं; और जितने भी कार्य हैं, वे सारे किसी न किसी से निर्मित हैं।८३ .
न्याय और वैशेषिक असत्कार्यवादी माने जाते हैं। वैशेषिक परमाणु को जगत् का कारण मानते हैं। इस जगत में सारे पदार्थ उत्पत्ति-विनाशशील हैं; नित्य परमाणुओं के विभिन्न संयोगों से बनते हैं और वियोग से विनष्ट होते हैं। भौतिक पदार्थों के अवयवों का विभाग भी किया जाता है और इन अवयवों को पुनः अन्य अवयवों में विभक्त किया जा सकता है, इस अनवस्था से बचने के लिये ७९. प्रकृतेर्महांस्ततो....पंच भूतानि । -सांख्यकारिका, ३३ ८०. मूलप्रकृतिरविकृति.... विकृतिः पुरुषः।-सांख्यकारिका, ३ ८१. षड्दर्शनसमुच्चय ४०, सांख्यकारिका, माठरवृत्ति, पृ. ३७ ८२. अक्षपादमते समाश्रयः । -षड्दर्शनसमुच्चय, १६ . ८३. यद् यद् कार्यं सत्तद् बोधाधारकारणम्..तस्मात् बोधाधारकारणम् ।-प्रशस्तपादभाष्य, पृ. ३०२
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