________________
भी आएगा जब पूरी टंकी खाली हो जाएगी और पानी आना बंद हो जाएगा। यही स्थिति हमारी भी हो जाएगी। जब सारे रस सूख जाएँगे।
हमारी आत्मा स्थूल व सूक्ष्म दो शरीरों में जीती है। जब आत्मा स्थूल शरीर से मुक्त हो जाती है, तब सूक्ष्म शरीर उसके साथ रहता है और दूसरी योनि में जाकर अपने शरीर को धारण कर लेता है। सूक्ष्म शरीर सदा हमारे साथ रहता है, इसलिए हम अपने बाह्य स्थूल शरीर की उज्ज्वलता के प्रति अधिक जागरूक न रहकर, संभव हो तो अपने आन्तरिक सूक्ष्म शरीर की उज्ज्वलता की ओर अधिक ध्यान दें। अन्यथा यह सत्य है कि इस काया को आज तक कोई बचा नहीं पाया है। यह हमसे छूटती जा रही है, निरन्तर अलग होती जा रही है। इसलिए बचा सकें, तो स्वयं को बचा लें। कहीं ऐसा न हो कि माल को तो बचा लें और मालिक ही हाथ से छिटक जाए। मालिक के बिना बटोरे हुए माल की क्या कीमत? जब हम देह छोड़ रहे होंगे, तब पचास लाख की उपयोगिता? जब मालकियत ही चली गई तो सब व्यर्थ है। माल बचे या खो जाए, क्या फ़र्क पड़ता है, अगर हम बच गए तो जीवन की उपलब्धि होगी।
कहते हैं एक घर में आग लग गई। लोग भीतर जाने लगे और ढूँढ-ढूँढ कर सामान लाने लगे। घर का सारा सामान बाहर आ गया। परिवार ने सोचा, आग लग गई, कोई बात नहीं सामान तो बच गया। अचानक पत्नी को याद आया, छोटा मुन्ना तो कहीं दिखाई नहीं दे रहा, उसने पति से पूछा, छोटा मुन्ना कहाँ है। पति ने कहा, अरे, वह तो कमरे में ही सोया रह गया।
अब इस माल का क्या करेंगे, जब मालिक ही जल गया। तुमने सारा माल बचा लिया और जो मालिक था, वह ही न रहा तो माल को बचाने का औचित्य क्या है? हमारे साथ भी जीवन की यही सच्चाई घटित होने वाली है। जीवन की सांध्य-वेला में यही प्रतीति होने वाली है कि जीवन भर बेकार ही वस्तुओं को इकट्ठा करने में लगे रहे। मकान, दुकान तो बनवा दिये, लेकिन जीवन का मंदिर न बना पाए। माल तो जमा किया और मालकियत खो बैठे। __ ध्यान का संदेश यही है कि व्यक्ति जीवन में मालिक को बचाने की कोशिश करे। यहाँ बैठकर जो उपलब्ध होगा वह जीवन, चेतना और आत्म-तत्त्व होगा। जिसके सामने भौतिक उपलब्धि नगण्य होगी। ध्यान का उद्देश्य यही है कि आप स्वयं को उपलब्ध हो जाएँ। जो व्यक्ति ध्यान में जीता है उसका वरण मृत्यु नहीं करती, मृत्यु के द्वार से भी वह अमरत्व को उपलब्ध होता है।
महावीर ने इसी स्थिति को विशुद्ध सामायिक कहा है। स्थितप्रज्ञ स्थिति। ध्यान
| 15
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org