Book Title: Dhyan Yog Vidhi aur Vachan
Author(s): Lalitprabhsagar
Publisher: Jityasha Foundation

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Page 69
________________ डबकी लगा सके.अपने अस्तित्व की पहचान कर सके। उस परमतत्त्व की आभा से स्वयं को सराबोर कर सके। दो परम्पराएँ हैं एक है जैन और दूसरी हिन्दू। अध्यात्म की दृष्टि से जैन अकेलेपन में विश्वास करते हैं । जितने फैल चुके हो उन्हें संकुचित करो और वैदिक परंपरा संकुचित को अधिक फैलाना चाहती है। ऋग्वेद का सूत्र है : ‘एकोऽहं बहुस्याम।' मैं एक हूँ और बहुत में समा जाऊँ। वहाँ ब्रह्मा अपनी विराटता दिखाता है, स्वयं को सम्पूर्ण अस्तित्व में फैलाने की कोशिश करता है। लेकिन यहाँ उल्टी प्रक्रिया है। आप चाहते हैं न, जब तक महावीर मुनि नहीं बने थे, उनका नाम था वर्धमान अर्थात् जो विस्तार दे रहा है, फैल रहा है, फैला रहा है। महावीर ने पाया कि अगर स्वयं को,स्वयं की वृत्तियों को फैलाता चला गया तो स्वयं को उपलब्ध नहीं हो पाऊँगा। मुनि-जीवन में उनका नाम हुआ महावीर, निर्ग्रन्थ नाम हुआ। वर्धमान फैलने का रूप है, महावीर सवयं में लौटने का रूप है। अपने जीवन की शांति को स्वयं में तलाश करना है। इस शांति के लिए अगर आप जंगल में हैं तो भी ठीक है और अगर घर में, परिवार के बीच हैं तब भी कोई परेशानी नहीं। आपका जीवन हर घड़ी, हल पल शांति दे सकता है। बशर्ते अन्तर में शांति की आकांक्षा हो। हमें शांति की प्यास होगी तो ध्यान निश्चित ही शांति देगा। जब भी वह अकेला होगा शांति को उपलब्ध होगा। कल एक महानुभाव कह रहे थे कि 'आपके ध्यान का मुझ पर गहरा रंग चढ़ गया है। इच्छा होती है सब कुछ छोड़कर आपके साथ हो जाऊँ, पर पत्नी.....। शायद वह तैयार नहीं होगी।' मेरे प्रभु, नाहक इतनी जल्दी यह कोशिश क्यों कर रहे हो। इस मार्ग पर क़दम भी बड़ी सावधानी से बढ़ाना होगा। वेश का संन्यासी बनने के लिए पत्नी इंकार कर जाये, पर जीवन के संन्यासी, इसमें उसे कहाँ बाधा होगी। मैं तो कहूँगा कि पहले ध्यान को थोड़ा और गहरा उतरने दो। घर की एक नई हवा बनाओ, एक नया वातावरण तैयार करो और कोशिश करो कि हमारा ध्यान, प्रेम और शांति निरंतर बढ़ती रहे । संभव है, संन्यस्त नहीं हो पाने के कारण आप संसार को न छोड पायें, लेकिन ध्यान आपके जीवन को ऐसा रूपान्तरित कर देगा कि आप संसार में भी जग जायेंगे। मुक्ति-पथ के पथिक हो जाएँगे। ____ अभी आपके लिये यह उचित रहेगा कि आप ध्यान में उतरना शुरू कर दें। शायद इसके लिये किसी की आज्ञा की ज़रूरत नहीं पड़ेगी। ध्यान तो तब भी कर सकते हो, जब सारा परिवार सो जाये, किसी को पता भी नहीं चले। दुनिया की नज़रों में तुम संसार में रहोगे, लेकिन ध्यान तुम्हारे जीवन में, संसार में भी संन्यास घटित कर देगा। 68/ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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