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वे आराम से आपसे बातें करती थीं। हालत यह थी कि कोई उनके दर्शन को जाता तो कभी-कभी उन्हीं से पूछ लेता यहाँ ऐसी कौनसी साध्वीजी हैं जिन्हें कैंसर हो गया है। चेहरे पर सहज सौम्यता! ।
जब व्यक्ति आत्मा के आनन्द को पहचान लेता है, अपने मूल अस्तित्व को पहचान लेता है तब देह के साथ होने वाली पीड़ा की अनुभूति नहीं हो पाती। हमारे साथ तो उल्टा हो रहा है। हमने देह को ही आत्मा मान लिया है। देह में ही आत्मा का भाव पैदा कर लिया है। हमारी सारी प्रवृत्तियाँ देह के साथ जुड़ गई हैं। कोई भी व्यक्ति देह से निवृत्त होकर आत्मा में प्रवृत्त नहीं हो पाता । मनुष्य शरीर को ही आत्मा
और आत्मा को ही शरीर मान लेता है। जबकि दोनों का भेद स्पष्ट है कि आत्मा शरीर में रहते हुए भी शरीर से अलग है । रथ पर बैठे रथिक की तरह।
आपने नारियल देखा है। जब तक नारियल के भीतर पानी होता है उसे हिलाओ केवल पानी की आवाज़ आती है, जब नारियल का पानी सूख जाता है उसे हिलाओ तो नारियल के गोले की आवाज़ आती है। कुछ समय पहले यह आवाज़ नहीं आ रही थी। जब पानी सूख गया और अन्दर का भाग ठीकरी से अलग हो गया तो गोले की आवाज़ आने लगी। नारियल में तीन चीजें हैं - ऊपर की जटा, नीचे लकड़ी, उसके भीतर नारियल । तीनों एक-दूसरे से जुड़े हैं। जैसे नारियल के भीतर रहते हुए भी नारियल का गोटा अलग रहता है उसी तरह जिस व्यक्ति ने आत्म-बोध प्राप्त कर लिया है, वह शरीर में रहते हुए भी शरीर से पूर्णतया मुक्त और स्वतंत्र रहता है। जो
आत्मलीन हो चुका है, आत्मा के सहज स्वभाव को पहचान चुका है, वह चाहे जिन स्थितियों में रहे स्वयं को सबसे अलग महसूस कर सकता है। यही तो भेद-विज्ञान की उपलब्धि है।
बताते हैं, करीब सत्तर वर्ष पूर्व काशी नरेश का ऑपरेशन हआ। विदेशों से डॉक्टर आए थे। उन्होंने डॉक्टरों से कहा, मैं ऑपरेशन कराने को तैयार हूँ पर मुझे बेहोश नहीं करोगे। 'नरेश! आप कैसी बात करते हैं बिना बेहोश किए कभी ऑपरेशन हुए हैं।' काशी नरेश मुस्कराए और कहने लगे, 'डॉक्टर इतने वर्ष साधना के पश्चात् थोड़ा-सा होश आया है और तुम होश को बेहोशी में बदलना चाहते हो। मुझे गीता लाकर दे दो, मैं उसे पढ़ता रहूँगा, अपने में लीन हो जाऊँगा फिर तुम्हें जो
ऑपरेशन करना हो कर लेना। मैं जब गीता पढ़ता हूँ मेरी देह का स्वभाव मुझसे अलग हो जाता है । मैं देह से उपरत हो गीता से जुड़ जाता हूँ।'
आखिर काशी नरेश का ऑपरेशन बिना बेहोशी की दवा दिए ही हुआ।वे गीता पढ़ते रहे और ऑपरेशन हो गया। डॉक्टर ने उन्हें हिलाया, वे हिल नहीं पा रहे थे। वे
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