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जैसे ही पढ़ोगे तुम्हें बोध हो जाएगा, होश आ जाएगा और बोध के साथ कभी कोई क्रोध या अशुभ कृत्य करने की वेला भी आ जाए तो अपने बोध को जीवित रखो। ___ मेरी नज़र में वही व्यक्ति चारित्रवान और समाधिस्थ है जिसका जीवन, जीवन के सारे व्यवहार अमूर्च्छित हैं, होशपूर्ण हैं। इसलिए मैं तो कहता हूँ, जो व्यक्ति जितना होशपूर्वक जीता हो, उतना ही उसके जीवन में दूसरों को सताने के, दुःखी करने के मौके कम आएँगे।अगर आप बोधपूर्वक, पल-प्रतिपल जागरूकता के साथ जीना शुरू कर दें, तो आपके जीवन में आश्चर्यजनक परिवर्तन होना शुरू हो जाएगा।
आपके लिए क्रोध करना मुश्किल हो जाएगा। क्रोध के लिए, हिंसा के लिए, चोरी के लिए बेहोश होना ज़रूरी है। यह अनिवार्य लक्षण है। ___ लोग मुझे पूछते हैं आपको क्रोध क्यों नहीं आता? कुछ लोगों को तो इस बात को लेकर आश्चर्य है कि कोई आपको कटु कहे जा रहा है और आप वही प्रसन्न मुख हैं। मेरे प्रभु, क्षमा करें मैं क्रोध नहीं कर सकता। क्रोध करूँगा तभी जब मैं बेहोश हो जाऊँगा। और मैं अमूर्छित व्यवहार को चारित्र का बुनियादी लक्षण मानता हूँ। ___ मुझे याद है लाओत्से चीन में थे। चीन के सम्राट ने, जिसकी राजसभा के मंत्री की मृत्यु हो गई थी, सभा बुलाई और पूछा, इस देश में सबसे बुद्धिमान व्यक्ति कौन है, जिसे मैं अपना मंत्री बना सकूँ? सभी ने सलाह दी, वर्तमान में तो सबसे अधिक बुद्धिमान लाओत्से है । सम्राट ने कहा, लाओत्से को लाया जाए। वह जहाँ भी है, उसे यहाँ लाया जाए। ढूँढ़ते-ढूँढ़ते सेनापति समुद्र किनारे पहुँच गया, जहाँ जाओत्से एक कछुए को इधर-उधर घुमा रहे थे। सेनापति ने लाओत्से से कहा, तुम यहाँ मिट्टी से खेल रहे हो, छोड़ो कछुए को, चलो राजमहल में, चीन का सम्राट तुम्हें प्रधानमंत्री बनाना चाहता है। उठो, मेरे साथ चलो।
लाओत्से मुस्कराए और कहने लगे, सेनापति मुझे एक बात कहो, राजमहल में राजसिंहासन के पीछे एक कछुआ है, जो स्वर्ण-पत्र से मंडित है, मेरे पास भी एक कछुआ है, इससे पूछो क्या यह भी राजसिंहासन के पास स्वर्ण-मंडित होकर रहना चाहेगा। सेनापति ने कहा, यह वहाँ नहीं जाना चाहेगा क्योंकि सोने की परत चढाने के लिए पहले कछुए को मारना पड़ता है। वहाँ भी जो कछुआ स्वर्ण-पत्र चढ़ा हुआ है वह भी मृत है। लाओत्से ने कहा, मुझे बताओ मैं अपने जीवन में, जीवन की तलाश में हूँ, या मृत्यु की तलाश है मुझे । हो सकता है राजमहल में पहुँचकर मुझ पर सोने की पर्ते भी चढ जाएँ। पर जैसे यह कछुआ राजमहल में नहीं जाना चाहता वैसे ही मैं भी यहाँ स्वतंत्र जीना चाहता हूँ।
लाओत्से ! तुम यह क्या कह रहे हो, सेनापति बोला, तुम्हारे जीवन में यह प्रथम
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