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गीता में इतने तन्मय हो गए थे। जब गीता के अठारह अध्याय पूर्ण हो गए, तब नरेश ने डॉक्टरों से पूछा, 'डॉक्टर ! मेरा ऑपरेशन हो गया?'
व्यक्ति ने देह और आत्मा के स्वभाव को पहचान लिया और अपने स्वभाव को पहचान लेने पर हड्डी भी टूट जाए तो तकलीफ नहीं होती।
बहुधा ऐसा होता है, जब हम इंजेक्शन भी लगवाते हैं, तो एक टीस-सी होती है, चीख निकल जाती है। आज मैं फिर आपसे कहूँगा कल को जब आप इंजेक्शन लगवा रहे हों उससे पहले संकल्प कर लें, यह देह को लग रहा है, मुझे नहीं लग रहा है। मैं विश्वास के साथ कह सकता हूँ आपको अहसास भी नहीं होगा। आप रोज प्रार्थना में गाते हैं -
देह छतां जेनी दशा, वर्ते देहातीत।
ते ज्ञानी ना चरण मां, हों वंदन अगणीत। जिस व्यक्ति ने शरीर में रहते हुए शरीर के स्वभाव को पहचान लिया है, वही व्यक्ति साधना के मार्ग पर कदम बढ़ा सकता है।
यह मुक्ति का स्वरूप है कि जो शरीर में रहते हुए भी स्वयं को शरीर से उपरत कर चुका है। देह में रहते हुए देह से ऊपर उठना, कीचड़ में रहते हुए कीचड़ से ऊपर उठना, यही तो साधना की पराकाष्ठा है।
एक बात और कहना चाहता हूँ कि हमारा अंधकार से लडने का जो स्वभाव बन गया है उसे भी बदलना होगा। आप कमरे में गए, जहाँ अंधकार ही अंधकार है। अब आपने इसे लाठियों से पीटना शुरू कर दिया। आप रात भर अंधकार को पीटते रहो, पर यह कभी भी दूर न होगा। अंधकार को भगाने के लिए अंधकार को दबाना नहीं है। अंधकार को मिटाने के लिये पहली शर्त प्रकाश की एक किरण पैदा कर दो। आप अंधकार से जूझते रहेंगे पर इससे मुक्त नहीं हो पाएँगे। तुम जीवन भर दुर्व्यसनों से, कषायवृत्तियों से, लालसाओं से, सम्मोहन से जूझते रहोगे पर इनसे मुक्त नहीं हो पाओगे। अरे, अंधकार से लड़ाई करके किसी ने उस पर विजय प्राप्त की है। एक दियासिलाई जलाओ, एक प्रकाश की किरण, एक दीपशिखा ही सारे अंधकार को दूर करने को पर्याप्त है। अंधकार को समाप्त करने के लिए अंधकार से जूझने की ज़रूरत नहीं है। प्रकाश का बोध पाने की ज़रूरत है। एक वृक्ष से लाखों तीलियाँ बनती हैं लेकिन एक तीली में वह क्षमता है जो लाखों वृक्षों को जला सकती है। प्रकाश की एक रेखा सारे अंधकार को दूर कर सकती है।
अब यह हमारे हाथ में है कि हम दियासलाई का क्या उपयोग करते हैं। उससे
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