Book Title: Dhyan Yog Vidhi aur Vachan
Author(s): Lalitprabhsagar
Publisher: Jityasha Foundation

View full book text
Previous | Next

Page 138
________________ सर्वप्रथम ध्यान के लिए सुविधाजनक आसन (बैठने की मुद्रा) का चयन करें, जिसमें हम लगभग 45 मिनट स्थिरता से सुखपूर्वक बैठ सकते हों। पद्मासन, सिद्धासन, वज्रासन, सुखासन ध्यान के लिए उपयुक्त हैं । सिद्धासन विशेष अनुकूल रहता है। खड़े होकर भी ध्यान किया जा सकता है। जिन्हें तंद्रा अधिक सताती हो, उन्हें खड़े होकर ही ध्यान करना चाहिए। अस्वस्थता आदि अपरिहार्य स्थितियों में लेटकर भी ध्यान किया जा सकता है, पर इसे आदत नहीं बनाना चाहिए। उपयुक्त आसन का चुनाव कर सहज स्थिर बैठें। पूरे शरीर का मानसिक निरीक्षण कर यह जाँचें कि शरीर के किसी भाग में तनाव या जकडन शेष है? मानसिक निर्देश से उस अंग के तनाव को शिथिल करें। आंतरिक प्रसन्नता को खिलने दें। नेत्र बन्द करें। अंतरदृष्टि से गुरुदर्शन करते हुए ध्यान का संकल्प लें और चैतन्य-ध्यान का प्रवेश करें। किसी भी कार्य में प्रवृत्त होने से पूर्व संकल्प, पूर्व-भूमिका का काम करता है। संकल्प हमें लक्ष्य की ओर बढ़ने की प्रेरणा देता है। इसके लिए ज़रूरी है कि संकल्प दृढ़ हो, संकल्प का सदा स्मरण रहे, एवं संकल्प को क्रियान्वित करें। यह संकल्प वास्तव में ध्यान की दीक्षा है। सद्गुरु के चरणों में बैठकर दीक्षित होने के पश्चात ध्यानमार्ग में प्रवृत्त हुआ जाता है क्योंकि यही गुरु और साधक के बीच सम्बन्ध स्थापित करता है। 'शरण-सूत्र' बोलकर उपसंपदा स्वीकार करें - शरण-सूत्र अरिहंते सरणं पवज्जामि। सिद्धे सरणं पवज्जामि। साहू सरणं पवज्जामि। धम्मं सरणं पवज्जामि। अप्पं सरणं पवज्जामि॥* प्रथम चरण : ओंकारनाद गहरी साँस भरें। नाभि पर ध्यान केन्द्रित कर ओम् का उच्चारण करें। एक बार उद्घोष, फिर तीन बार सहज साँस, फिर उद्घोष। ओंकारनाद की प्रक्रिया में ध्यान नाभि/शक्ति-केन्द्र से प्रारंभ होकर ऊपर उठता हुआ क्रमशः हृदय, कंठ, * भावार्थ : अरिहंत, सिद्ध, साधु, धर्म और आत्मा की शरण स्वीकार करता हूँ। | 137 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147 148 149 150 151 152 153 154