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सच का अनुमोदन करें, दिखे न पर के दोष जीवन चलना बाँस पे, छूट न जाये होश ॥ 33 ॥ बसें नियति के नीड़ में, प्रभु का समझ प्रसाद । भले जलाये होलिका, जल न सके प्रहलाद ॥ 34 ॥ 'कर्ता' से ऊपर उठे, करें सभी से प्यार। ज्योत जगाये ज्योत को, सुखी रहे संसार ॥ 35 ॥ शान्त मनस् ही साधना, आत्म-शुद्धि निर्वाण।
भीतर जगे चेतना, चेतन में भगवान् ॥ 36 ॥ शाम के समय शरीर दिनभर की व्यस्त जीवनचर्या की आपाधापी से थका हुआ होता है। प्रवृत्तियों का तनाव तन-मन पर हावी रहता है। अत: ध्यान में उतरने से पूर्व इस तनाव से मुक्त होना आवश्यक है। इसके लिए दो विधियाँ प्रस्तुत हैं - ___ 1. कायोत्सर्ग - जब शारीरिक थकान प्रबल हो या जिन लोगों की आजीविका शारीरिक श्रम-प्रधान हो, उनके लिए यह विधि अनुकूल है।
2. तनावोत्सर्ग - जिनका मन क्लान्त हो, उदास हो, प्रमाण या मानसिक तनाव से ग्रस्त हो अथवा जिनकी दिनचर्या मानसिक श्रम-प्रधान हो, उनके लिए यह विधि उपयुक्त है। कायोत्सर्ग
5 मिनट मन को हम ध्यान में लगाएँ, उससे पूर्व शरीर को भी ध्यानमय बना लें। इसके लिए हम कायोत्सर्ग-ध्यान करें। कायोत्सर्ग मृत्यु-बोध अथवा विदेह-बोध की प्रक्रिया से गुजरने की कला है। देह-भाव और देह-राग को छोड़ते हुए विदेहानुभूति के लिए कायोत्सर्ग की प्रक्रिया अपने आप में एक विशिष्ट प्रयोग है। यह संबोधिध्यान में प्रवेश के पूर्व की तैयारी है।
प्रक्रिया से गुजरने के लिए खड़े होकर, बैठकर या लेटकर सर्वप्रथम धीरे-धीरे श्वास लेते हुए पूरे शरीर में कसावट दें, श्वास को रोकते हुए सम्पूर्ण ऊर्जा के साथ समस्त मांसपेशियों को नाभि की ओर दो क्षण के लिए खिंचाव दें और तत्क्षण उच्छ्वास के साथ शरीर ढीला छोड़ दें। यह प्रक्रिया कुल तीन बार करें।
अब शरीर के प्रत्येक अंग को मानसिक रूप से देखते हुए एक-एक अंग को शिथिल होने के लिए आत्म-निर्देशन दें। प्रात:कालीन सत्र के शवासन की तरह का अनुभव करें।
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