Book Title: Dhyan Yog Vidhi aur Vachan
Author(s): Lalitprabhsagar
Publisher: Jityasha Foundation

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Page 129
________________ ध्यान - भावना की समृद्धि के लिए अब हम भावपूर्वक जीवन- गीत गाएँ । जीवन - गीत का भावार्थ हृदय में उतारते हुए सस्वर पाठ करने से आध्यात्मिक संकल्प और अहोभाव का विकास होता है, ध्यान में उतरने की भावनात्मक भूमिका निर्मित होती है । एसो पंच णमुक्कारो सव्व पावप्पणासणो मंगलाणं च सव्वेसिं पढमं हवई मंगल। * * जीवन- गीत मानव स्वयं एक मंदिर है, तीर्थ रूप है धरती सारी मूरत प्रभु की सभी ठौर है, अन्तर्दृष्टि खुले हमारी ॥ जीवन का सम्मान करें हम, जीवन में भगवान् निहारें । रूपांतरित करें जीवन को जीवन को ही स्वर्ग बनाएँ । मानवता के मन-मंदिर में, संबोधि का दीप जलाएँ । अन्तर्-शून्य उजागर करके, आनन्द - अमृत से भर जाएँ ॥ भीतर की नीरवता पाकर, ध्यान - प्रेम की बीन बजाएँ । अपने मन की परम शान्ति को, सारी धरती पर सरसाएँ ॥ Jain Education International शरीर शुद्धि योगाभ्यास 15 मिनट योगाभ्यास शारीरिक और मानसिक तनाव- -मुक्ति के लिए सहज-सरल उपयोगी क्रियाएँ हैं । ध्यान में उतरने के लिए दो बातें सहायक हैं. - — भावार्थ : अर्हत्, सिद्ध, आचार्य, उपाध्याय और साधुजनों को नमस्कार हो । यह पंच नमस्कार समस्त पापों का नाश करने वाला और सर्व मंगलों में प्रथम मंगल-रूप है । 128 | For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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