________________
ग्यारहवीं मुद्रा : पाद-हस्तासन ___ यह दूसरी मुद्रा की स्थिति है। पाँव के अंगूठे से हाथ की अँगुलियाँ स्पर्श करें
और सिर घुटनों को। बारहवीं मुद्रा : हस्त-उत्तान आसन ___ साँस भरते हुए धीरे-धीरे सीधे खड़े हों, हाथों को आसमान की ओर उठाकर पहली मुद्रा संपन्न करें।
नमस्कार-मुद्रा में खड़े हों। परमात्मा का स्मरण करें और हाथों की अँगुलियों को कमल की पंखुड़ियों की तरह फैलाएँ। बड़े प्रेम और अहोभाव के साथ यह श्रद्धा-सुमन परम पिता परमात्मा को समर्पित करें। 5.शवासन
आसनों के बाद शवासन किया जाना चाहिए। यह योगाभ्यास की पूर्णाहुति है। पीठ के बल चित लेट जाएँ। गर्दन अपनी सुविधानुसार दायें या बायें निढाल छोड़ दें। पैरों के बीच एक फुट की दूरी हो । जाँघों, पिंडलियों और पंजों में कोई तनाव न रहे । दोनों हाथों को शरीर से थोड़ा दूर रखें । हथेलियाँ आसमान की ओर खुली हुई हों और आँखें बंद। __ शरीर से अपनी पकड़ को छोड़ें। पूरे शरीर को मानसिक रूप से देखें । शरीर के कौन-कौन से अंग विशेष तनावग्रस्त हैं, उन्हें देखें, अनुभव करें और ढीला छोड़ें। शिथिलता का अनुभव करें।अब पैर के अंगूठे से प्रारम्भ कर सिर के बालों तक, चित्त को एक-एक अंग पर स्थिर करें और उसे तनाव-मुक्ति का सुझाव दें। जैसे -
दायें पैर का अंगूठा तनाव-मुक्त हो जाये। तनाव-मुक्त हो रहा है। तनाव-मुक्त हो गया है । (शिथिलीकरण अवश्य करें।)
प्रत्येक अंग पर ध्यान केन्द्रित कर इसी सुझाव को दोहराएँ। ऐसा अनुभव करें कि हम शरीर नहीं, शरीर से भिन्न चेतन-सत्ता हैं । शरीर से हमारा तादात्म्य छूट चुका है। शरीर को शव की तरह अपने से अलग पड़ा हुआ देखें । साँस की गति को भी स्वसूचन द्वारा शिथिल और मंद करें। कुछ क्षण साँस को पूर्णतः बाहर ही रोके रहें, अर्थात् साँस छोड़कर फिर साँस न लें। पूर्ण शिथिलता का, विश्राम का अनुभव करें। यथाशक्ति कुछ देर इसी स्थिति में रुककर धीरे-धीरे गहरी लंबी साँस भरें। पूरे शरीर पर अपनी चैतन्य-दृष्टि दौड़ाएँ और साँस के साथ शरीर में प्रवेश करें। शरीर के
134
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org