________________
यह आसन जाँघ, पीठ, पेट और पैर के तलुओं की मांस-पेशियों के लिए उत्तम व्यायाम है । मधुमेह, किडनी, लीवर और आमाशय के रोगों पर इससे नियंत्रण होता है । सम्पूर्ण देह में ऊर्जा और स्फूर्ति का संचार होता है ।
4. योग - चक्र
योग-चक्र सर्वांग व्यायाम है। यह बारह आसनों और योग मुद्राओं की एक क्रमबद्ध श्रृंखला है। इसे पारस्परिक शब्दावली में 'सूर्य नमस्कार' कहते हैं । इसके दैनिक अभ्यास से शारीरिक जड़ता मिटती है। शरीर स्वस्थ, बलिष्ठ और कांतिमय होता है, पाचनशक्ति का विकास होता है, रक्त एवं प्राण का संचार सुचारु होता है; साथ ही मानसिक एवं शारीरिक शक्तियों का विकास होता है और आंतरिक पवित्रता बढ़ती है। आवेश और विकल्पों में शिथिलता आती है । आत्मिक तेजस्विता से पूर्ण आभामंडल का विकास होता है। साहस, निडरता और आत्म-विश्वास में वृद्धि होती है । यह प्रक्रिया प्रात:कालीन ध्यान से पूर्व की होती है ।
1
विधि : सूर्य अथवा अपने इष्ट की ओर मुँह करके 'नमस्कार - मुद्रा' में खड़े हो जाएँ। हृदय में पूर्ण समर्पण - भाव जाग्रत करते हुए ज्योति - स्वरूप परमात्मा को प्रणाम करें और अग्रलिखित मंत्र तीन बार उच्चारित करें
-
तसो मा ज्योतिर्गमय । असतो मा सद्गमय । मृत्योर्मा अमृतं गमय ॥'
*
तत्पश्चात् योगचक्र की एक-एक मुद्रा सम्पादित करें।
पहली मुद्रा : हस्त - उत्तान आसन
साँस भरते हुए दोनों हाथों को ऊपर की ओर उठाएँ । भुजाएँ कान से लगी हुई हों । जितने हो सके, हाथ और सिर को पीछे की ओर झुकाएँ ।
*
दूसरी मुद्रा : पादहस्तासन
साँस छोड़ते हुए धीरे-धीरे आगे की ओर झुकें। हाथ को पैरों के पास ज़मीन पर रखने का प्रयास करें। सिर को घुटनों से लगाएँ । घुटनों को सीधा रखें, घुटने मुड़ने न पाएँ । ध्यान रखें जितना झुक सकें, उतना ही झुकें, जबरदस्ती न करें ।
132 |
-
तीसरी मुद्रा : अश्व-संचालन - आसन
हाथों को ज़मीन पर ही रखें। साँस भरते हुए दायें पैर को पीछे की ओर ले जाएँ भावार्थ : हे प्रभु, ले चलो अंधकार से प्रकाश की ओर, असत् से सत् की ओर,
मृत्यु से अमृत की ओर ।
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org