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1. शारीरिक जड़ता की समाप्ति ।
2. शारीरिक स्थिरता की प्राप्ति ।
ध्यान-मार्ग पर पहले-पहल कदम बढ़ाने वालों का न केवल चित्त चंचल होता है, वरन् उनमें शारीरिक स्थिरता और स्वस्थता का भी अभाव होता है। ध्यान की गहराई में जाने की बजाय तंद्रा में डूब जाने की संभावना रहती है ।
शरीर माध्यम है और माध्यम का स्वस्थ, निर्मल और अनुकूल होना आवश्यक है। ध्यान की प्रारंभिक अवस्था में दैनंदिन अभ्यास के लिए सुबह-शाम दोनों समय लगभग एक घंटे, एक ही आसन में तनाव रहित स्थिरतापूर्वक बैठने की क्षमता साधक में होनी वांछित है । यह तभी संभव है जब हमारे शरीर के अंग-प्रत्यंग में पर्याप्त लोच हो, कोई जकड़न न हो, स्नायविक शांति हो और शरीर के जोड़ों तथा नस-नाड़ियों में दूषित वायु आदि का अन्य विकार अवरुद्ध न हो। प्राणवायु के आगमन, दूषित वायु के निर्गमन एवं रक्त संचार में कोई बाधा न हो, क्योंकि ये ही हमारे संजीवनी-शक्ति के संचार के माध्यम हैं ।
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अतः ध्यान से पहले सुबह थोड़ा योगाभ्यास करना लाभदायक है । योगाभ्यास को हम निम्न पाँच चरणों में पूरा करेंगे -
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1. संधि-संचालन
2. स्थिर दौड़
3. योगासन
4. योगचक्र
5. शवासन
3 मिनट
2 मिनट
3 मिनट
4 मिनट
3 मिनट
1. संधि - संचालन
शरीर में मुख्य रूप से गर्दन, कंधे, कोहनी, कलाई, कमर, घुटने, टखने, अँगुलियों के जल - ये संधि-स्थल हैं ।
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दैनंदिन क्रिया-कलापों में इन संधि - स्थलों के अनियमित उपयोग के कारण इनमें जकड़न पैदा हो जाती है, जो शारीरिक स्थिरता और स्वस्थता में बाधक है । इन संधि-स्थलों के मुक्त संचालन के लिए हम निम्न व्यायाम करें -
(क) पद - संधि संचालन : नीचे बैठे जाएँ। दोनों पैरों को सामने की तरफ फैला लें। हाथों को घुटनों पर रखें। रीढ़ की हड्डी और गर्दन सीधी हो । पैर के पंजों को मिलाकर तीन-तीन बार आगे-पीछे झुकाएँ । तत्पश्चात् दोनों पंजों को तीन बार
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