Book Title: Dhyan Yog Vidhi aur Vachan
Author(s): Lalitprabhsagar
Publisher: Jityasha Foundation

View full book text
Previous | Next

Page 120
________________ CONNECRA 69 अन्तर-शुद्धिः जीवन-मुक्ति ROO ध्यान-शिविर में पधारे सभी मुमुक्षु आत्माओं को हृदय के प्रेम भरे प्रणाम । कहने भर को आज शिविर का समापन दिवस है, पर हकीकत में यह समापन नहीं जीवन के उद्घाटन का दिवस है। एक नई यात्रा के लिए आप लोगों के भीतर संकल्प जगा है। मैं देख रहा हूँ कि सभी असमंजस में हैं कि कैसे आज का दिन समापन-दिवस घोषित किया जाए। आज का दिन तो नये जीवन की शुरुआत का दिन है। लोगों के भीतर आनन्द निपजा। चाहे हँसी खिली या आँसू बहे, दोनों ही आनन्द के प्रतीक थे। हँसी के फव्वारों में से भी आनन्द झलक रहा था और प्यारी-प्यारी आँखों में से जो अमृत की बूंदें टपक रही थीं उन्हें देखकर ऐसा लग रहा था कि जन्म-जन्म से विषपायी इंसान आज निर्विष होने के लिए संकल्पबद्ध हो चुका है। एक महानुभाव आए, कहने लगे – महाराजजी! आपका जोधपुर में चातुर्मास था, कई ध्यान-शिविर हुए, पर मैं चूक गया। इस चूक का अहसास विगत चार दिनों में नहीं आज हुआ। आज सुबह ध्यान से गुजरते हुए मैं गहराई में प्रवेश कर गया और मुझे लगा कि जीवन का आनन्द, जो मेरे भीतर छिपा हुआ था, सद्गुरु का सान्निध्य भी मिला था लेकिन मेरी चूक मुझे ही खा गई। कोई बात नहीं जो चूका सो गया, आज जाग गये, यही जीवन की उपलब्धि है। कोई आए और कहने लगे अगर संभव हो तो शिविर को पाँच दिन के लिए और बढ़ा दीजिए। मुझे लगा सचमुच इस माउण्ट आबू की धरती पर जहाँ प्राकृतिक सुषमा तो है ही, लेकिन इस धरती के कण-कण में | 119 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147 148 149 150 151 152 153 154