Book Title: Dhyan Yog Vidhi aur Vachan
Author(s): Lalitprabhsagar
Publisher: Jityasha Foundation

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Page 122
________________ हो। मनुष्य का स्वभाव ध्यान है। चेतना का स्वभाव ध्यान है। यदि मनुष्य अपने स्वभाव से विलग होता है, तो अपने आनन्द से भी वंचित होता है। हमारे जीवन की यही चूक है कि हमारा ध्यान 'ध्यान' पर नहीं है। अपनी चेतना, अपनी आत्मा पर कोई ध्यान नहीं है। लोगों का सारा ध्यान देह पर, संसार और दुनियादारी पर टिका है। मनुष्य अपना सारा जीवन देह को स्वस्थ रखने, सजाने, सँवारने पर व्यतीत कर देता है। इसके बावजूद क्या वह अपनी चेतना को थोड़ा-सा सँभाल पाता है? सारा जीवन बिता दिया देहाध्यास करते हुए, देह के साथ जुड़ते हुए, देह को सँभालते हुए लेकिन क्या अपने भीतर की चेतना को सँवार पाए? ___ शरीर को थोड़ी भी तकलीफ हुई डॉक्टर के यहाँ गए, दवाइयाँ लीं। शरीर में जहाँ वेदना हुई, पीड़ा पनपी, जहाँ पर पीड़ा की अनुभूति हुई उसे स्वस्थ करने के लिए चिकित्सा का उपयोग किया गया। लेकिन भीतर की चेतना में कितने फोड़े हुए, उसके मवाद को निकालने के लिए कोई चिकित्सा की? अंग्रेजी में दो शब्द हैं जो सीधे हमारे जीवन के साथ जुड़े हैं। 'मेडीसिन' और 'मेडीटेशन' – दोनों मनुष्य के साथ जुड़े हैं। एक का संबंध व्यक्ति के शरीर के साथ है और दूसरे का संबंध हमारी अन्तर-चेतना के साथ है। शरीर को स्वस्थ रखना है तो मेडीसिन/दवाइयों का, औषधियों का उपयोग करना पड़ेगा और चेतना को स्वस्थ करना है तो 'मेडीटेशन'। ध्यान का उपयोग करना होगा। एक बात सदा स्मरण में रखिए, व्यक्ति देह से चाहे जितना स्वस्थ हो जाए, लेकिन भीतर के निजानन्द स्वरूप को उपलब्ध नहीं हो पाया, भीतर के स्वभाव को उपलब्ध नहीं हुआ, अपनी चेतना को उपलब्ध नहीं कर पाया, तो वह कभी देहातीत स्थिति को प्राप्त नहीं कर पाएगा। उसका ध्यान देह में ही अटका रह जाएगा। जीवन की सांध्य वेला में भी वह देह में ही उलझा रहेगा। जो व्यक्ति ध्यान में डूब चुका है, अपनी आत्मा में डूब चुका है, उसके लिए मृत्यु, मृत्यु नहीं होती, मृत्यु भी निर्वाण की ज्योति बनकर आती है। जो स्वयं में उतर गया है, खुद में खुदा को खोजने लगा है, वह भला कभी मृत्यु के मुँह में आ पाएगा? मृत्यु से वे ही लोग घबराते हैं जो देह में जीते हैं। जिन्हें यही अहसास है कि देह ही आत्मा है वे ही मृत्यु से डरते हैं। लेकिन जो यह जानते हैं कि देह और आत्मा अलग है, वे मृत्यु का आलिंगन करते हैं । उनके लिए मृत्यु हो ही नहीं रही है सिर्फ चोले का परिवर्तन, वेश का रूपान्तरण हो रहा है। आज यहाँ थे कल वहाँ चले गए। इसके अलावा क्या बदला है? दुनिया में सुख-शान्ति-चैन कायम करने के लिए, दुनिया को आनन्द देने के लिए मात्र गरीबी दूर कर देंगे तो आनन्द छा जाएगा ऐसी बात नहीं है । आज विश्व की | 121 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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