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लिए हानिकारक हो सकती है। हमें इन सब छोटी-छोटी क्रियाओं के प्रति सजग होना पड़ेगा। पहले हम इन्हीं क्रियाओं से प्रारम्भ करें, अपनी सजगता को साधने के लिये कहीं कोई ज़्यादा झंझटबाजी नहीं होगी। __रास्ते पर चल रहे हैं, खाना खा रहे हैं, स्नान कर रहे हैं, कपड़े पहन रहे हैं, ये हैं तो सब सामान्य-सी क्रियाएँ, अगर इन छोटी-छोटी क्रियाओं से भी जागरूकता की शुरुआत करें तो आप हैरान हो जाएँगे जब जगे हुए कपड़े पहनेंगे, जगे हुए ही जूते पहनेंगे, खाना खाएँगे। एक अद्भुत आनन्द व सजगता रहेगी। मैं तो कहूँगा यह ध्यान की सबसे बड़ी उपलब्धि है कि सुबह आपने यहाँ बैठकर ध्यान किया जितनी सजगता के साथ किया, उतनी ही सजगता के साथ यहाँ से जाते समय बाहर लेते जाना और ग्राहक से बात करते समय, खाना बनाते समय, सड़क पर चलते समय इसी सजगता को साथ रखना दैनंदिनी में । मैं तो आज आपको यही कहँगा कि अगर इस शिविर की कुछ उपलब्धियाँ साथ ले जाना चाहते हो तो सजगता को साथ ले जाना। जीवन के प्रत्येक कृत्य में इतनी सजगता रखना जितनी सजगता के साथ चूल्हे पर पापड़ सेंकते हो, अगर क्षण भर के लिए ध्यान चूक गया तो पापड़ जल जाएगा। वह व्यक्ति जीवन में किसी भी कृत्य में असफल नहीं हो पायेगा जो दिन भर के प्रत्येक कार्य में पापड़ सेकने की तरह सावधानी रखता है।
पहले छोटी-छोटी क्रियाओं के प्रति जगें और उसके बाद क्रोध, घृणा, वैर वैमनस्य के लिये जगना शुरू करें। आप पाएँगे अगर आप इनके प्रति सजग हो गए हैं तो कैसा भी विपरीत वातावरण उपस्थित हो जाए क्रोध नहीं प्रकट कर पाएंगे। अभद्रता प्रकट नहीं कर पाएँगे और धीरे-धीरे तो ज़िंदगी इतनी मजेदार हो जाएगी कि रात को सोओगे तब भी जगे-जगे सोओगे और महावीर की नज़रों में तो वही व्यक्ति मुनि है जो जगा हुआ जी रहा है, विवेक से जी रहा है, होशपूर्वक प्रत्येक कृत्य कर रहा है। महावीर के अनुसार तो बेहोशी में कृत्य न करते हुए भी व्यक्ति बंधन का भागी बन जाता है और होशपूर्वक कृत्य करते हुए भी बन्धनों का विमोचन कर लेता है। महावीर से जब शिष्यों ने पूछा, प्रभु! हम कैसे खाएँ, चलें, उठें, बैठें, सोएँ, ताकि पाप-कर्मों का बंधन न हो। महावीर ने कहा, विवेक से चलो, विवेक से बैठो, विवेक से खाओ-पीओ तुम्हें पाप कर्म का बंधन नहीं होगा। महावीर के विवेक का अर्थ है - होश । महावीर अगर कहते हैं कि विवेक से खाओ तो इसका मतलब हुआ होशपूर्वक खाओ। खाते समय तुम्हें होश रहना चाहिए कि तुम अभी खा रहे हो। महावीर जब कहते हैं कि विवेक से चलो तो इसका अर्थ हुआ कि पैर उठे तो जानो कि पैर उठा। ज़मीन पर वापस गिरे तब यह अहसास हो कि मेरा पैर ज़मीन पर जा रहा है।
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