Book Title: Dhyan Yog Vidhi aur Vachan
Author(s): Lalitprabhsagar
Publisher: Jityasha Foundation

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Page 119
________________ महावीर से जब पूछा गया कि आप मुनि किसको कहते हैं? महावीर ने यह नहीं कहा जो नग्न है, या जो रजोहरण - मुँहपत्ति रखता है वह मुनि है । महावीर ने जो ज़वाब दिया, वह अद्भुत था । उन्होंने कहा 'असुत्ता मुनि' - मुनि वह है जो जगा हुआ है। जो सोया हुआ नहीं है महावीर उसे मुनि कहते हैं। शिष्यों ने फिर पूछा कि आप अमुनि या असाधु किसे कहते हैं? छोटे से सूत्र में महावीर ने अपने साधना-मार्ग का सार दे दिया। बड़ी गहरी और समझ की बात कह दी - जो जागा सो मुनि, जो सोया सो अमुनि। अगर आप जाग कर जी रहे हैं, तो आपके जीवन में साधुता का सूर्योदय होगा और अगर सोए-सोए जी रहे हैं तो असाधुता के शिकंजे में कसे हैं । हमारे जीवन की प्रत्येक क्रिया स्मरणपूर्वक हो, होशपूर्वक हो । बुद्ध, महावीर, कृष्ण, सबके संदेशों का सार है - अप्रमत्तता । अगर तुम अप्रमत हो तो अहिंसक हो पाओगे, अपरिग्रही और ब्रह्मचारी बन पाओगे क्योंकि अप्रमाद ही साधना का सूत्र है । जिस दिन जीवन में सौ फीसदी अप्रमाद की पौ-बहार हो जाएगी, उसी दिन आत्मा अमृत की बूँद तुम्हें उपलब्ध हो जाएगी। अंत में, आज मैं आपसे यही निवेदन करूँगा कि आपके ध्यान शिविर की यह सबसे बड़ी उपलब्धि होगी कि आप यहाँ से सजग होकर जाएँ। जो कुछ करें होशपूर्वक करें । मेरा प्रणाम है उन सब आत्म-साधकों को जिन्होंने इस ध्यान - -शिविर में कदम बढ़ाए हैं स्वयं को उपलब्ध करने के लिए, होश का दीप जलाने के लिए, बिन बाजा की झंकार के लिए। 118 Jain Education International - For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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