Book Title: Dhyan Yog Vidhi aur Vachan
Author(s): Lalitprabhsagar
Publisher: Jityasha Foundation

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Page 110
________________ छ: घंटे का मौन लेते हो। यह सब कुछ सोये-सोये धर्म करना हुआ। अगर आत्मनिरीक्षण के साथ ईमानदारी से सोचें, तो सामायिक, प्रतिक्रमण, पूजा-प्रार्थना जिस रूप में सोये-सोये आज हम इन सबको कर रहे हैं, ये सब प्रश्नचिन्ह बनकर हमारे विवेक के सामने खड़े हैं। बेहोशी में तीस उपवास भी कर लोगे पर क्षमा का होश एक दिन भी तुम्हारे जीवन में घटित न हो पाएगा। महावीर कहते हैं, तुम सब कुछ करो। उन्होंने यह कभी नहीं कहा कि तुम निठल्ले, प्रमादी होकर किसी कमरे में बैठ जाओ या गुपचुप जीवन का समापन कर लो। महावीर ऐसा कभी नहीं चाहते हैं। इसलिए जिन लोगों ने बुद्ध और महावीर पर आक्षेप लगाया कि इन दोनों के सिद्धान्तों ने भारतीय जनजीवन को अकर्मण्य कर दिया, यह सरासर गलत है। महावीर ने न तो दुनिया को सुखी किया, न प्रमादी बनाया, न ही उनके सिद्धान्त दु:ख से भरे हैं। 'जम्म दुक्खं, जरा दुक्खं' जैसी गाथाओं को सुनकर उन लोगों ने कह दिया कि महावीर ने दु:ख की बातें कहीं। हकीकत तो यह है कि महावीर ने मनुष्य को दु:ख की पहचान कराई। बिना दुःख को पहचाने, कैसे संभव है दुःखमुक्ति और सुख-प्राप्ति। महावीर ने अपने शिष्यों को यही संदेश दिया कि तुम एक क्षण का भी प्रमाद मत करो। महावीर ने यह बात केवल गौतम के लिए नहीं कही थी कि तुम क्षणभर का प्रमाद मत करो - 'समयं गोयम मा पमायए।' महावीर की यह बात समस्त मानव जाति के लिए हितकारी है। हकीकत तो यह है कि हमारी अप्रमत्तता और जागरूकता, यही तो हमारे भविष्य का निर्माण करती है। छोटे-से-छोटे कृत्य में बड़ी से बड़ी जागरूकता, महावीर इसी को साधक की अप्रमत्तता कहते हैं और महावीर का जो गुणस्थान क्रमारोहण है, उसमें अप्रमत्त गुणस्थान सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण है, क्योंकि यही वह गुणस्थान है, जो साधक के उत्थान का निर्णय करता है। यह गुणस्थान आरोहण तो ठीक वैसे ही हुआ; जैसे राजपथ पर हितोपदेश में लिखा रहता है - सावधानी हटी, दुर्घटना घटी। एक कार चालक के लिए भीड़ भरे रास्ते में जितनी सावधानी की ज़रूरत होती है, उतनी ही सावधानी साधक को अपने जीवन में पल-पल, क्षण-क्षण रखनी पड़ती है। सामान्यतया चित्त की तीन अवस्थाएँ कही गई हैं - सुषुप्ति, जाग्रति और स्वप्न। केवल खुली आँखों में ही जागरूकता नहीं रखनी है। वह साधक साधना के मार्ग पर काफी आगे बढ़ गया है, जो नींद भी होश के साथ लेता है। एक वीतराग पुरुष की यह पहचान है कि व्यक्ति जीवन में घटित होने वाली छोटी-छोटी घटनाएँ, छोटे-छोटे कृत्य और छोटी-छोटी बातों में उतनी सजगता 109 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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