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जब-जब सात मंज़िल के मकान को देखते हो भीतर में दुःख पैदा होगा कि ओह इसे तो सात मंज़िल का मकान मिला है। लेकिन वही द:ख-सुख में बदल जाएगा जब पड़ौस की झोंपड़ी को देखोगे। तुम कहोगे ऊपर वाले ने मुझे तो तीन मंज़िल का मकान दिया है पर इसे तो मात्र टूटी-फूटी झोंपड़ी। यह मनुष्य के ऊपर है कि किसी दृश्य को देखकर वह सुख उत्पन्न करना चाहता है या दुःख। कुछ भी पता नहीं चलता कि वह क्या चाहता है। कभी वह चीज़ सुख बन जाती है और कभी दुःख। चीज़ न आती है न जाती है, लेकिन विचारों के माध्यम से सुख-दुःख का कारण बन जाती है।
तुम लॉटरी का टिकट खरीदते हो। दूसरे दिन पाते हो कि समाचार-पत्र में वही टिकट नम्बर छपा है। एक लाख का पुरस्कार तुम्हें मिल गया है। तुम अपने मित्रों, परिचितों, परिवारजनों को आमंत्रित करते हो और एक रात्रिभोज का आयोजन कर लेते हो । पाँच हज़ार रुपये खर्च कर डालते हो। अगले दिन समाचार : पत्र में विज्ञापन पढ़ते हो कल के विज्ञापन में भूलवश ग़लत नम्बर छप गया।अब वही व्यक्ति छातीपीटने लगा। न तो रुपए आए, न रुपए गए। लेकिन उस नम्बर ने हमारे भीतर खुशियाँ भी पैदा कर दी और उसी नम्बर ने दुःख भी पैदा कर दिया। सुख और दुःख प्रायः बाहर के निमित्त से आते हैं जबकि भीतर का आनन्द किसी निमित्त से नहीं, अन्दर के स्वभाव से निपजता है। ___ मैं आपसे कहना चाहता हूँ आप सुख पाने की न सोचें। जीवन में आनन्द और उत्सव को उपलब्ध करने का लक्ष्य रखें। जहाँ सुख होगा वहाँ दुख भी होगा। सुख
और दुःख एक सिक्के के दो पहलू हैं लेकिन आनन्द चिरस्थाई है, वह कभी दुःख में परिणित नहीं हो सकता। जब व्यक्ति के भीतर यह भाव आता है कि मैं साक्षीभाव में, दृष्टा-भाव में जी रहा हूँ तब वह आनन्द की अनुभूति कर सकता है। इसे ऐसे अनुभव करें - जब शरीर पर कोई फोड़ा हो जाए, बहत पीड़ा दे रहा है लेकिन उस पीड़ा को देख-देखकर आप अपने मन में यह भाव परिपक्व कर लें कि यह शरीर मेरा नहीं है, यह फोड़ा मेरा नहीं है, फिर इस देह में होने वाली पीड़ा की अनुभूति मुझे क्यों हो रही है। बार-बार इस तत्त्व का चिंतन करते रहो, पीड़ा को बाहर निकालते रहो तब हमें दर्द की अनुभूति नहीं होगी। मैंने ऐसे लोगों को देखा है। आपने नाम सुना होगा साध्वी विचक्षणश्री जी का, जिन्हें स्तन का कैंसर हो गया था, लेकिन उनके मुँह से ऊफ तक नहीं सुनी गई। ऐसा नहीं कि वहाँ दर्द नहीं था, दर्द था।शरीर का स्वभाव अपना काम कर रहा था लेकिन उन्होंने आत्मा का स्वभाव पहचान लिया था। वह आत्मा शरीर के स्वभाव से मुक्त हो गई। जिन लोगों ने उस साध्वी को देखा है वे जानते हैं कि उस कैंसर की गाँठ में खून रिसता था, मवाद बहकर आता रहता था और
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