Book Title: Dhyan Yog Vidhi aur Vachan
Author(s): Lalitprabhsagar
Publisher: Jityasha Foundation

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Page 77
________________ एक फ़कीर हुए जो सदा हँसते रहते थे। उनके जीवन का ध्येय था स्वयं भी हँसूगा और दूसरों के जीवन में भी प्रसन्नता के फूल भरूँगा। उन्होंने सारा जीवन प्रसन्नता से जीया। जब जीवन की सांध्य-वेला निकट आई, सारे भक्त आस-पास इकट्ठे हो गए। लेकिन फ़कीर का तो एक ही काम कि कुछ ऐसा कह देना कि लोग हँसते रहें। उसने अपने भक्तों को बताया कि तीन दिन बाद उसकी मृत्यु होने वाली है लेकिन मेरी मृत्यु पर कोई रोना नहीं। मेरी आत्मा को अगर प्रसन्न देखना चाहते हो तो कोई भी अश्रु न बहाना, कोई उदास भी मत होना । अत्यन्त प्रसन्न रहना और मेरी मृत्यु को भी अपने लिए उत्सव समझना। जब उसे स्वयं पता चल गया कि मैं तीन दिन में मरने वाला हूँ तो वह चौबीस घंटे हँसने-हँसाने लगा। उसने लोगों को जितना हँसाया उसे सुनकर तो एक बार मुर्दे को भी हँसी आ जाए। जिस संत ने हँसी को, प्रसन्नता को अपना जीवन समर्पित किया हो वह अंतिम समय में उदासी कैसे दे सकता है। जीते-जी तो प्रसन्नता लुटाई ही मरकर भी हँसी के फूल खिलाए। मेरे प्रभु, जीवन को हँसते-हँसते जीओ उस फ़कीर की तरह। ___ तुम कितनी दुःख भरी जिंदगी जी रहे हो। तुम्हारे आँसू बाहर भले ही दिखाई न देते हों, लेकिन तुम्हारा दिल। वह तो रोया करता है। कभी पति से शिकायतों को लेकर तो कभी पत्नी के क्रर स्वभाव से। कभी व्यापार से घाटा हो गया, कभी बच्चे बिगड़ गए उन्हें देखकर। तुम्हारा जीवन अवसाद का घरोंदा हो गया है जिसमें प्रसन्नता के फूल मुरझा गए हैं। दिमाग निरर्थक विचारों का पुलिंदा बन गया है, कूड़े का ढेर हो गया है। बाहर का कचरा तो साफ भी हो जाता है तुम बुहारी कर देते हो लेकिन दिमाग में भरे कचरे का क्या होगा? उसे कैसे साफ करोगे। ध्यान वह बुहारी है जो मस्तिष्क के कचरे को साफ कर सकती है। अपने मन को मौन करने के लिए जीवन को शांति और आनंद से भरने के लिए ध्यान की बुहारी लगाओ। __ भगवान बुद्ध ने कहा था - समाधि के मार्ग में प्रवेश करना चाहते हो तो सबसे पहले स्वयं को निर्विकल्प करने का प्रयास करो। जब तक तुम्हारे भीतर अनर्गल विचारों की गंदगी भरी हुई है, ऊपर चाहे जितने बरक लगा देना, गंदगी तो छिपी ही रहेगी। आप जानते हैं दिन-प्रतिदिन बढ़ने वाली दुर्घटनाओं का क्या कारण है? मैं कहँगा मस्तिष्क में उपजने वाले निरर्थक विचार। सड़क पर तो मनुष्य वाहन चला रहा है लेकिन उसका दिमाग वहाँ नहीं है, वह किन्हीं और विचारों में उलझा हुआ है। वह कहीं दूर की सोच रहा है। और जब व्यक्ति की तन्मयता, एकाग्रता एक ओर नहीं रहती, जहाँ वह होता है वहाँ नहीं होती, तो उसके जीवन में दुर्घटनाएँ घटित होंगी ही। 76/ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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