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आवश्यकता होगी। बाह्य प्रकाश में तुम दूसरी वस्तुएँ ढूँढ़ लोगे, लेकिन स्वयं को खोजने के लिए बाहरी प्रकाश की आवश्यकता नहीं होगी। घुप्प अंधकार में स्वयं के बोध को उपलब्ध हो सकते हो। गहन अंधकार में भी स्वयं की तलाश कर सकते हो। एक बात और है - बाहर जितना गहरा अंधकार होगा, भीतर की तलाश उतनी ही गहरी शुरू होगी। जब तक अंधकार का बोध न होगा तब तक भीतर जगमगाने वाले दीपक की आभा हमें दिखाई न देगी।
दीपावली कभी पूर्णिमा को नहीं आती। वह सदा अमावस्या को होती है। क्योंकि अंधकार की प्रतीति के बिना, अंधकार के ज्ञान के बिना प्रकाश का महत्व न होगा। सत्य की जानकारी के लिए असत्य का बोध होना भी आवश्यक है। असत्य को जानकर ही स्वयं को सत्य के बोध से भर सकते हो। झूठ को झूठ, गलत को गलत, मिथ्या को मिथ्या नहीं पहचानोगे, तो भला उससे छुटकारा कैसे पाओगे? प्रकाश की यात्रा करने के पूर्व अंधकार की प्रतीति कर लो। क्षमा के मार्ग में उतरना चाहते हो तो क्रोध की पूर्ण प्रतीति कर लो। अन्यथा सत्य के लिए बढ़ाए गए प्रत्येक कदम में असत्य प्रश्नचिन्ह बनकर खड़ा हो जाएगा।
मेरे प्रभु, जीवन की अच्छाइयों को बाद में देखना, पहले बुराइयों का सामना तो कर लो। जीवन में जो अंधकार समाया है उसे निरख लो, असत् प्रवृत्तियों को भलीभाँति पहचान लो। ऐसा कर लेने पर संसार में रहकर भी तुम अनासक्त जीवन जी सकोगे। अनासक्ति का संबंध शरीर के साथ नहीं है और न ही लाल, पीले, सफेद वस्त्रों के साथ है। इन श्वेत वस्त्रों को धारण करके भी व्यक्ति आसक्ति के कीचड़ में जी सकता है और इन रंगीन वस्त्रों के साथ भी व्यक्ति अनासक्त योगी हो सकता है।
संसार में ऐसे जीओ जैसे कीचड में कमल । पैर भले ही संसार में हों पर मस्तिष्क आकाश में रहना चाहिए। आपने देखा व्यक्ति सत्तर वर्ष का हो जाये तब भी मेरा-तेरा जारी रहता है ! जब तक मेरा-तेरा जीवित रहेगा, अनासक्ति की छाँह न मिल सकेगी।
जीवन में धर्म के नाम पर चाहे जो कुछ कर लेना पर अगर भीतर से निर्लिप्तता, अनासक्ति न जागी तो द्वैत में भटकते रह जाओगे । ब्रह्म-स्वरूप में वही साधक प्रवेश कर पाता है जो अनासक्त है । अनासक्ति ही साधना का प्रथम और अंतिम चरण है।
आज मैं आपको आत्म-चिंतन के लिए कुछ सूत्र दूंगा, अपनी ही कमजोरियों को पहचानने के लिए। जीवन तो बंधन-मुक्ति के लिए पाया था, पर अब तक जीवन में कितने नये बंधनों को बाँध चुके हो, क्या कोई सूची है? दलदल से उबरने के लिए आए थे पर और गहरे जाते जा रहे हो। और इस सत्य को सदा ख्याल में रखना कि
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