________________
lox
साक्षी की सजगता
संत नागार्जुन किसी सम्राट के महल में भोजन के लिए आमंत्रित हुए। नागार्जुन अपना मिट्टी का पात्र साथ लिए राजमहल में पहुँचे। रानी ने संत को भोजन करवाया । उसके मन में विचार आया, नागार्जुन इतने महान संत हैं और वे मिट्टी का पात्र रखें, यह अनुचित है। रानी ने अपने पास से रत्नजड़ित स्वर्ण पात्र उन्हें भेंट में दे दिया । नागार्जुन ने वह पात्र ले लिया। रानी ने सोचा था नागार्जुन संत हैं, यह पात्र लेने से इन्कार कर देंगे। पर यह क्या; रानी ने दिया, नागार्जुन ने बग़ैर आग्रह स्वीकार कर लिया ?
संत रवाना होने लगे । रानी से रहा न गया, उसने सोचा यह कैसा फ़कीर है । इसने एक बार भी इंकार न किया । मेरे महल में एकमात्र रत्नजड़ित स्वर्ण - पात्र है । मैंने तो सिर्फ मनुहार की थी और इन्होंने तो स्वीकार ही कर लिया ।
रानी ने कहा, संत साहब ! आप जानते हैं यह पात्र रत्नजड़ित स्वर्ण का है। संत मुस्कराए, कहने लगे, 'रानी ! तुम्हारी नज़र में यह भले ही रत्नजड़ित सोने का पात्र हो लेकिन मेरे लिए तो स्वर्ण और मिट्टी के पात्र में कोई अन्तर नहीं है । वह काली मिट्टी का पात्र था तो यह चमकीली मिट्टी का पात्र है । '
Jain Education International
रानी संकोचवशात् कुछ बोल नहीं पाई और संत उस पात्र को लेकर चले गये । लाखों का पात्र था वह । संत उसी में भिक्षाटन करने लगे। एक दिन एक चोर की नज़र
For Personal & Private Use Only
93
www.jainelibrary.org