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पर वहाँ ध्यान में क्या करते हो?' अब यह हर किसी की कहानी है। उन्होंने बताया, ‘जहाँ मैं रहता हूँ वहाँ से दो सौ कि.मी. दूर मेरी पत्नी रहती है। हम अलग-अलग शहरों में सर्विस करते हैं । मैं सुबह ठीक सात बजे ध्यान करता हूँ, और उस शहर में मेरी पत्नी भी ठीक सात बजे ध्यान करती है।' मैंने फिर पूछा, ' ध्यान में करते क्या हो?' उन्होंने बताया, 'इस शहर में रहकर मैं उसका ध्यान करता हूँ और वहाँ वह मेरा ध्यान करती है ।' दोनों एक-दूसरे का ध्यान कर रहे हैं ।
जीवन में ऐसा ही कुछ घटित हो रहा है । तुम्हें अभी तक प्रकाश का बोध नहीं है । इसलिए असत्य से छूटने के लिए सही मार्ग भी उपलब्ध नहीं हुआ ।
मनुष्य अपने जीवन में समाई हुई दुष्प्रवृत्तियों को नहीं पहचानेगा, तो उनसे मुक्त नहीं हो पाएगा। जरा देखो, पान- पराग खाते हो, बीड़ी-सिगरेट फूँकते हो, कभी बोतल तक भी गये होगे, कभी सोचा ये जीवन की कितनी जहरीली दुष्प्रवृत्तियाँ हैं ? तुम इनके दीवाने, मोहताज हो गए हो। अगर तुम सिगरेट न पीओ तो सिगरेट का कुछ न बिगड़ेगा, लेकिन तुम्हें लगता है कि तुम्हारा कुछ बिगड़ रहा है। तुम्हारी आदतें तुम पर हावी (विजयी) हो गईं। परिणाम यह हुआ कि तम्बाकू तुम नहीं चबा रहे, तुम्हें तम्बाकू चबा रहा है। तुम सिगरेट नहीं पी रहे सिगरेट तुम्हें पी रही है । ये गुलामी तुम्हारे लिए कितनी मँहगी होगी, शायद आने वाले दिनों में तुम्हें अहसास हो जाये ।
तुम भूल गए हो जैसे सिगरेट पीकर उसका टुकड़ा फेंक देते हो, ऐसे ही जिंदगी भी हो जाने वाली है । यह जिंदगी सिगरेट का धुआँ है । पल-पल यह धुआँ उठ रहा है । व्यक्ति नहीं पहचान रहा कि मेरी जिंदगी धीरे-धीरे धुआँ बन रही है । एक दिन धुआँ उठना बंद हो जाएगा और इस तन को सिगरेट के टुकड़े की तरह फेंक दिया जाएगा।
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तुम स्वयं को पढ़ा-लिखा समझते हो। इस बात से गौरवान्वित हो कि तुम्हारे पास ऊँची-ऊँची डिग्रियाँ हैं, फिर भी तुम सिगरेट के डिब्बे पर लिखी वैधानिक चेतावनी – 'सिगरेट पीना स्वास्थ्य के लिए हानिकर है' - पढ़ते हो? शायद पढ़ते भी हो, लेकिन जानबूझकर उपेक्षा कर देते हो । उसका धुआँ तुम्हारे मुँह लग गया है। अनके वस्तुएँ इसी तरह तुम्हें आकर्षित करती हैं और तुम आस्वादन करते-करते उसके ग़ुलाम हो जाते हो। यह तुम्हारे मन की कमजोरी है । तुम जानते हो यह हानिकर है । पर तुम इसके इतने मोहताज हो गए हो कि बिना रोटी खाए रह सकते हो लेकिन यह आदत नहीं छोड़ सकते। और तो और चाय की भी हमने ऐसी आदत बना ली है कि लोग कहते हैं, उपवास तो कर लें पर चाय. .! हेरोइन जैसे आधुनिक व्यसनों ने तो मनुष्य की हालत ही बिगाड़ दी है। मुझे याद है जब हम मद्रास में थे,
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