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क्या तुम स्वयं भी चाहो तो भी न बुझा पाओगे । हाँ! संसार की माया के चलते इस ज्योति पर कोई आवरण आ जाएगा। ऐसे ही जैसे किसी जलते हुए दीपक पर गिलास रख दी जाए तो उसका प्रकाश गिलास में ही रह जाएगा । वह मिटा नहीं है, ज्योति बुझी नहीं है, बस प्रकाश गिलास में सिमट गया है। आपने गिलास हटा दिया, कोई दूसरा बड़ा, उससे बड़ा बर्तन ढक दिया तो? प्रकाश का भी विस्तार होता जाएग। और अगर उसे कमरे में रख दें तो पूरा कमरा प्रकाशित हो जाएगा । और यदि उसे भवन की छत पर रख दें तो पूरा वातावरण टिमटिमा उठेगा। अगर आपका दीपक जल चुका है तो उसकी तरंगें भी हरवलय और वलय के पार पहुँच चुकी हैं। यदि आप ज्योतिर्मय हो चुके हैं तो कभी भी उस तल को स्पर्श कर सकते हैं, जो परम शिखर है जहाँ आनन्द है, शांति है, समाधि है । वह अस्तित्व का गुरु-शिखर है जो आपको पाना है। ध्यान आपको उन तलों तक पहुँचाए, भीतर की चाँदगी, भीतर की रोशनी हमें प्रमुदित करे यही शुभकामना है ।
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