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अगर किसी के जीवन में मनोशान्ति उपलब्ध हो जाती है, शान्त दशा प्राप्त हो जाती है तो उसे चाहे जितने कार्यों में उलझना पड़े लेकिन उनसे वह तुरन्त मुक्त भी हो जाएगा। वह जब चाहेगा अपने मूल उत्स में लौट सकेगा। सारा जीवन तो कूड़ेकचरे में बिता दिया अब क्या जीवन की अंतिम किस्त में भी वह कूड़ा-कचरा रखना है? मैंने पहले भी कहा था जब व्यक्ति शान्त चित्त होकर मृत्यु के द्वार में प्रवेश करता है तब उसके सामने न स्वर्ग का प्रलोभन होता है और न नरक के यम का भय । वह निर्विचार होकर अपने जीवन में निर्वाण की ज्योति जला लेता है।
निरर्थक अंधविश्वास और निरर्थक विचार दोनों से बचना चाहिए, तुम पापड़ सेंकते हो आँच पर । देखो, कितनी तन्मयता, जागरूकता और एकाग्रता से सेंकते हो। कहीं से कच्चा न रह जाए या कहीं से जल न जाए। कभी अपने विचारों की ओर ध्यान दिया? नहीं, वे तो आ रहे हैं, जा रहे हैं। मस्तिष्क में आवाजाही जारी है। उनकी तनिक भी उपयोगिता नहीं है पर मानसिक संघर्ष जारी है। बाहर से शान्त हो, कुछ नहीं बोल रहे हो, पर भीतर तनावग्रस्त हो, फूट पड़ने को तैयार बैठे हो। मौका नहीं मिले तो कुंठित हो जाते हो। मैं चाहता हूँ इन विचारों के साक्षी हो जाओ। विचारों को आने-जाने दो, पर स्वयं को उनसे मत जोड़ो। देखो और देखते चले जाओ, वे स्वयं से छूट जाएँगे, उनके बोझ से तुम मुक्त हो जाओगे। ____ कहते हैं, जर्मन विचारक हैरीगिल जापान गया। उसने सोचा था वहाँ किसी संत से मिलूँगा और अपने जीवन में ध्यान को उपलब्ध करने का प्रयास करूँगा। भारत के बाद जापान ही विश्व में ऐसा देश है जिसने ध्यान की ऊँचाइयों को पाया है। हैरीगिल ने अपनी आत्म-कथा में लिखा है कि मैंने ध्यान को पाने के लिए हर संभव प्रयास किए। न जाने कितने संत-फ़कीर-महात्मा से मिला, आत्म-साधकों से मिला, कइयों ने उपदेश दिए, संदेश दिए लेकिन मेरे जीवन में ध्यान घटित नहीं हुआ। मैं अपने तीन वर्षों के जापान प्रवास में ध्यान को उपलब्ध नहीं हो पाया।
उसने वापस जर्मनी जाने की तैयारी की। होटल का बिल चुकाया और जाने को तत्पर हुआ। तब होटल मालिक ने उसे एक दिन और रुकने का आग्रह किया। हैरीगिल बोला जो बात पिछले तीन वर्षों में घटित नहीं हई वह आज एक दिन में कैसे हो सकती हो। होटल मालिक ने आग्रह किया कि वह केवल एक दिन और रुक जाए। उसने कहा, 'मैं तुम्हें एक फ़कीर से मिलाना चाहता हूँ।' हैरीगिल बोला, 'बहुत हो गया मैं किसी फ़कीर से नहीं मिलना चाहता। मैं थक चुका हूँ, मैं कहीं नहीं जाऊँगा।' होटल-मालिक बोला, 'तुम अपने कमरे में ठहरो मैं उस फ़कीर को ही बुला लाता हूँ।' और होटल के मालिक ने बोकोजू को आमंत्रित किया।
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