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वह वृद्ध मुस्कराया, कहा, 'अच्छा! अब तूने पूछ ही लिया है तो तुमसे क्या छिपाना । बाल भले ही सफेद हो गये हों पर दिल तो अभी भी..... काला है।'
बात उस वृद्ध ने पते की कही। लोग अस्सी-नब्बे साल के हो जाते हैं फिर भी दिल.....। बस, अब पूछो मत।
मुझे याद है हम लोग तमिलनाडु की यात्रा पर थे। होली के दूसरे दिन एक व्यक्ति के निवास पर हमारे प्रवचन का कार्यक्रम था। संयोगवशात् बड़े महाराजश्री ने सब लोगों के बीच उस दम्पति को अपने पास बुलाया और कहा, 'तुम्हारे घर संत लोग आए हैं ऐसा करो पाँच तिथियों के लिए 'चौथ व्रत' (ब्रह्मचर्य) का नियम ले लो।' पत्नी तो शीघ्र तैयार हो गई। बड़े महाराजश्री ने पति की ओर देखा, उसने कहा, 'महाराजजी, इसी को नियम दिला दो, मैं तो लेने वाला नहीं।' यानी यह तो नियम पाल लेगी, तुम कहाँ जाओगे।
ये भीतर की तृष्णाएँ और वृत्तियाँ आखिर कब तक चलती रहेंगी? तुम्हारे बाल सफेद हो गए हैं, जीवन-संध्या करीब है फिर भी हमें परमात्मा की कोई खबर नहीं है। उसका बीज अंदर ही अंदर सड़-गल-सूख रहा है। उसका कोई उपयोग नहीं हो रहा है। बरगद की संभावनाएँ नष्ट हो रही हैं। सोचो, उस बीज का उपयोग कब करोगे? मेरा ध्येय है हम अपने जीवन में उस बीज का बोध प्राप्त कर लें। परमात्मा की आभा को अपने अन्दर प्रगट कर लें। आवश्यकता इस बात की है कि व्यक्ति उस बोध को उपलब्ध होने की आकांक्षा रखे। ___ मनुष्य ने अपने राग के दायरे इतने विस्तृत कर रखे हैं कि वह अकेला होना ही नहीं चाहता।और जब तक तुम अकेले नहीं हो जाओगे, अपने बीज को पहचान नहीं पाओगे। अकेले होते ही अंकुरण शुरू हो जाता है। लेकिन अकेलापन सहन नहीं हो होता। जब तुम घर में अकेले होते हो, टी.वी. चला लेते हो, रेडियो सुनने लगते हो और कुछ नहीं तो नए-नए काम निकाल लेते हो, क्योंकि अकेले नहीं हो सकते। तुम अकेलेपन से ऊबने लगते हो, कुछ करना चाहते हो। हमारी यही वृत्ति बाधक बन जाती है। हमारी बेहोशी हमें जगने नहीं देती। जैसे ही कभी अकेलापन आता है, हम तरन्त सचेत हो जाते हैं, अकेलापन हमें खलने लगता है। कुछ न कुछ ऐसा करना शुरू कर देते हैं कि स्वयं को व्यस्त रख सकें। यदि तुम अकेले हो तो स्वयं की तलाश शुरू करो। जीवन के बहुमूल्य समय को व्यर्थ मत गँवाओ।
रेडियो चला रहे हो, गीत सुन रहे हो। काश! उन परम शांति के क्षणों में हम अपने अस्तित्व की तलाश शुरू कर पाते। अकेलापन तो हमारे जीवन का अहोभाग्य होना चाहिए। जब मनुष्य किसी शांत, एकान्त, निर्जन स्थान पर बैठकर स्वयं में
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