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कहा, 'भगवन् ! क्षमा कीजिए। मैं इतने लोगों के पास गया पर किसी ने नहीं कहा कि उसे शांति की तलाश है, मुक्ति की कामना है। सबकी अपनी-अपनी इच्छाएँलालसाएँ हैं।' बुद्ध मुस्कराए और कहने लगे, 'मैं यही कहना चाहता हूँ। जब तक मनुष्य के जीवन में परिपक्व तलाश नहीं होगी, परिपक्व चाह नहीं होगी, वह इसकी पूर्ति की ओर नहीं आ पाएगा।' ध्यान से शांति मिलती है, निश्चय ही, पर पहले यह तय कर लो कि तुम्हें वास्तव में शांति की तलाश है ।
मेरे पास लोग आते हैं और यही कहते हैं कि मेरी दुकान नहीं चलती है, धंधा मंदा चल रहा है। महिलाएँ कहती हैं मेरा पति से झगड़ा चल रहा है, अमुक सामान खो गया, अमुक चोरी हो गई, बीस तरह की समस्याएँ । कुछ दिन पहले की बात है, एक सज्जन कहने लगे जब से मैंने आपके पास आना शुरू किया है तब से मेरी दुकान बहुत अच्छी चलने लग गई। मैंने कहा, 'मैं दुकानदार नहीं हूँ, जो दुकान चलाऊँ । मैं तो उसे खोलने की बात कह रहा हूँ, जो भीतर कहीं रुका - रुँधा पड़ा है । '
जिन्हें जीवन में वास्तविक शांति की तलाश है ध्यान उनके जीवन में निश्चित ही शांति की रोशनी सिद्ध होगा ।
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अभी तक तो हम शांति - अशांति के अन्तर्द्वन्द्व में ही झूलते रहे हैं । कभी तुम वैराग्य को छूते हो, कभी राग में डूब जाते हो; कभी क्रोध करते हो, कभी तुम क्षमा में चले जाते हो। यह मन की दुविधा है। जब तक अडोल, अकंप नहीं बनोगे प्रगति नहीं हो पाएगी। अचल, निष्कंप नहीं रहोगे तो चेतना का दीप सदाबहार रोशनी नहीं दे पाएगा ।
आपने कभी ‘मरघटी वैराग्य' सुना है? किसी की मृत्यु हो गई और उसे जलाने के लिए श्मशान घाट में पहुँचे। वहाँ कुछ देर के लिए हमारे मन में वैराग्य के भाव जग जाते हैं । जलती चिता को देखकर हमारे भीतर वैराग्य के भाव पैदा होंगे कि यह क्या संसार है ? लेकिन जैसे ही श्मशान से बाहर आओगे, मित्रों के बीच बैठोगे, वही गप्पें और खाना-पीना शुरू हो जाएगा। कहाँ गया वैराग्य ! कैसे उमड़ा था और क्या उसकी गति हुई। थोड़ी देर पहले तो संसार से स्वयं को हटाना चाहते थे और अब वापस संसार में लौट आए। सभी वही प्रवृत्तियाँ ।
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प्रवृत्तियाँ भी कैसी। किसी घर में मृत्यु हो जाती है । शोक मनाते हो। कहते हो अभी हम मंदिर नहीं जाएँगे। क्योंकि हमारे भाई का देहावसान हो गया है। दो माह तक शोक रखना पड़ेगा न । अब उनसे पूछो तुम्हारे यहाँ शोक केवल सामायिक, प्रतिक्रमण, पूजा, आराधना इसी में आकर जुड़ा है। या जो महिला अपने पति के स्वर्गवास के छ: माह बाद भी मंदिर आने को तैयार नहीं है, उससे पूछो, क्या तुम
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