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प्रश्न पूछा, 'आप कैसी बात कर रहे हैं, मैंने कौन-सी युवती को कंधे पर बिठाया?' वृद्ध संत ने कहा, 'मैंने जिस युवती को हाथ पकड़ने से भी इंकार कर दिया, तुम उसी युवती को कंधे पर बिठा लाए।' युवक संत ने कहा, 'गुरुदेव' मैंने जिस युवती को कंधे पर बिठाया था, उसे वहीं नदी के किनारे छोड़ आ गया और आपने उसे छुआ तक नहीं लेकिन मन में ढोकर यहाँ तक साथ ले आए हो। मैं तो उसे वहीं भूल गया, पर आप उसे साथ में लिए आ रहे हो ।'
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राग जब वीतराग में परिवर्तित होता है तब कंधे पर कौन बैठा है, कौन नहीं की अनुभूति भी नहीं होती । राग, विराग जब वीतरागता में बदलता है, ध्यान की ज्योति के माध्यम से, ध्यान के गह्वर से, ध्यान के द्वार से तब व्यक्ति की चेतना अपनी महादशा - परिनिर्वाण को उपलब्ध होती है ।
ध्यान शिविर के द्वारा मैं आप लोगों से यही कहना चाहूँगा कि आपके भीतर जो ऊर्जा है उसे सामान्य ऊर्जा न समझिए । सूर्य, अग्नि, पवन सभी की शक्ति तुम्हारे अंदर है बशर्ते तुम उसे पहचानने की कला सीख जाओ। मैं यही निवेदन करूँगा कि ध्यान के केन्द्र में प्रवेश करते समय एकमात्र प्रयास यही करो कि मैं कुछ क्षणों के लिए अपनी देह से अलग हो रहा हूँ, अपनी ऊर्जा को विराट से विराट रूप दे रहा हूँ । परमात्मा की ऊर्जा और तुम्हारी ऊर्जा में इतना ही अंतर है कि तुम्हारी ऊर्जा इस शरीर में सिमटी हुई है और परमात्मा की ऊर्जा सम्पूर्ण अस्तित्व में व्याप्त हो गई है ।
आज की इस पुण्य वेला में आप सभी को शुभकामनाएँ कि आप लोग अपने जीवन में प्राप्त ऊर्जा को निरंतर विस्तार देते जाएँ। जो ऊर्जा व्यर्थ खो रही है उसका जीवन मुक्ति के लिए उपयोग करें, आत्म- जागरण के लिए, आत्म - चेतना की ति के लिए, अन्तर्बोध के लिए ।
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