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श्मशान बन गया। किसी ने स्वप्न में भी सम्राट के ऐसे आदेश की कल्पना नहीं की थी। यह तो जन्मदिन ही मृत्यु- दिवस बन गया ।
लेकिन वह वजीर जो अब तक नृत्य देख ही रहा था, जिसकी मौत आने को थी। वह उठ खड़ा हुआ। कहा, 'वाद्ययंत्र बंद नहीं किये जायें। अब तक तो मैं दर्शक था परन्तु अब मैं स्वयं नृत्य करूँगा । आखिरी दिन है, और साँझ होने में अभी बहुत देर है । और यह तो मेरे जीवन की आखिरी साँझ है, इसे मैं उदासी में नहीं गँवा सकता हूँ ।'
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लेकिन वाद्यकार हाथ उठाये तो भी वीणा न बजे, सबके हाथ शिथिल हो गये । वजीर ने प्रश्नसूचक निगाहों से उन्हें देखा । वे कहने लगे, आप कैसी बात कर रहे हैं । मौत सामने खड़ी है और हम खुशी मनायें ?
वजीर, जो जिंदगी का राज ढूँढ़ चुका था, मुस्कराया, कहने लगा, 'जो मौत के सामने खड़े होकर खुशी मना लेता है, उसके लिये मौत समाप्त हो जाती है । जो मृत्यु को सामने देखकर खुश नहीं हो सकता, वह जिंदगी में कभी खुश नहीं हो सकता । मौत तो प्रतिदिन मनुष्य के सामने खड़ी है, यह तो मेरा सौभाग्य है कि मुझे पता लग गया कि मैं आज साँझ मरने वाला हूँ, अन्यथा शायद मैं किसी गफलत में रह जाता पर अब मैं मृत्यु को जीवन से भी ज्यादा आनन्द से स्वीकार करने की क्षमता रखता हूँ । '
वजीर नाचने लगा। वाद्य और गीत सभी कमजोर चल रहे थे । कहीं सुर-ताल नहीं बैठ रहा था । सब उदास थे। लेकिन फिर भी वजीर नाच रहा था, वह जीवन के अन्तिम आनन्द को खोना नहीं चाहता था ।
सम्राट को भी खबर मिली। उसे तो कल्पना भी नहीं थी कि वजीर के साथ ऐसा होगा। जानबूझ कर उसने जन्मदिन को यह खबर भेजी थी, ताकि वजीर और उसके परिवार को गहरा आघात लग सके। लेकिन सैनिकों ने आकर कहा- सम्राट ! वह तो मृत्यु की सूचना सुनकर नाच रहा है। कहता है कि साँझ मौत आने वाली है इसलिए एक क्षण भी नहीं खोऊँगा । अपनी जिंदगी को जितने अहोभाव से भर लूँ उतना ही कम है। आश्चर्यचकित हुआ सम्राट स्वयं वजीर के घर पहुँचा । देखने के लिये कि आखिर क्या ऐसा भी होता है? वह तो दंग रह गया। सचमुच में वजीर नाच रहा था, वाद्य बज रहे थे, गीत चल रहे थे। उसने वजीर से कहा, 'क्या तुम जानते हो, की शाम तुम्हारी अंतिम साँझ है। और तुम गीत गा रहे हो, नाच रहे हो ।'
आज
वजीर ने सम्राट को धन्यवाद देते हुये कहा, 'इतना आनन्दमय जीवन मैं कभी नहीं पा सका, जितना आज पा रहा हूँ । आपको धन्यवाद कि आपने आज के लिए
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