Book Title: Dhyan Yog Vidhi aur Vachan
Author(s): Lalitprabhsagar
Publisher: Jityasha Foundation

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Page 55
________________ में 'कुलयोगी' शब्द का प्रयोग किया। कुलयोगी का अर्थ है किसी व्यक्ति ने पूर्व जन्म में साधना की और साधना की जितनी विराटता थी उतनी आयुष्य की विराटता नहीं थी। उसकी साधना पूर्ण होनी थी दो वर्षों में, आयुष्य पूर्ण हो गया सत्तर वर्ष में। अब एक सौ तीस सौ वर्ष बच गए। हरिभद्र कहते हैं उसने पुनः जन्म धारण किया और किसी सद्गुरु के सम्पर्क में आते ही वापस उसने साधना प्रारम्भ कर दी। सद्गुरु का संस्पर्श पाते ही वह अपने में लौट आया और साधना शुरू हो गई। आचार्य कहते हैं वही व्यक्ति 'कुलयोगी' है। क्योंकि कुल से, परम्परा से, पूर्वभव से, उसने योग को उपलब्ध किया है। ___ आप देखते होंगे इस शिविर में कुछ लोग ऐसे हैं, जो ध्यान में बैठते ही कुछ क्षणों में गहराई में उतर जाते हैं। वास्तव में वे कुलयोगी हैं । अतीत में साधना करते आए हैं, श्रृंखला टूट गई थी, आयुष्य पूर्ण हो गया, साधना जारी रही। इस देह में आकर सद्गुरु का जैसे ही सम्पर्क मिला, साधना पुनः आगे बढ़नी प्रारम्भ हो गई। इसलिए साधना को, ध्यान को शिथिल मत होने देना। मैं तो कहना चाहँगा कि अपने घर में किसी छोटे से कमरे को ध्यान-कक्ष' की, ऊर्जा-कक्ष' की संज्ञा देना और प्रतिदिन वहाँ साधना करना। यह मत समझना कि तुम पन्द्रह वर्षों से ध्यान कर रहे हो तो केवल तुम ही प्रभावित हो रहे हो, तुम्हारे साथ-साथ आस-पास का सारा वायुमण्डल भी प्रभावित हो रहा है। आप कभी रामेश्वरम् गए हों या विवेकानन्द शिला (कन्याकुमारी) गए हों, तो आपने भी अनुभव किया होगा कि वहाँ जो आनन्द मिलता है, वह शब्दातीत है। कोई सात वर्ष पूर्व मैं पाण्डिचेरी स्थित अरविंद आश्रम में गया। वहाँ अरविंद की समाधि के पास कोई दो घंटे बैठा रहा। लोग आ रहे थे, दर्शन करके निकलते जा रहे थे, कहीं कोई आहट नहीं। मैंने इन वर्षों में जो जीवन्त समाधि देखी उनमें अरविंद भी एक हैं। समुद्र के किनारे पाण्डिचेरी में वह आश्रम है। मैं वहाँ दो घंटे बैठा और बैठने के करीब दस मिनिट बाद ही मुझे महसूस हुआ कि इस स्थल पर उन्होंने इतने लम्बे अर्से तक साधना की है कि यहाँ सम्पूर्ण वायुमण्डल ऊर्जामय हो चुका है, ध्यानमय, ज्योतिर्मय हो चुका है। मुझे लगा उस समाधि से निकलकर ऊर्जा मुझमें समा रही है। ऊर्जा तो वहाँ सदा है लेकिन अनुभूति सिर्फ उन्हें होती है जिनमें ग्रहण करने की क्षमता हो। प्रतिदिन लोग आते थे, दर्शनार्थी की तरह, उनके अन्तस् में कोई अभीप्सा नहीं थी। कुछ गिने-चुने व्यक्ति जरूर उस ऊर्जा को आत्मसात कर रहे थे। इसीलिए मैं कहता हूँ अपने घरों में एक ध्यान-कक्ष अवश्य बनाएँ। जहाँ आप निरन्तर साधना करते रहें। फिर देखें, वह कक्ष कितना ऊर्जामय हो चुका है। निश्चित ही तीन वर्षों के उपरान्त वह इतना ऊर्जावान हो जाएगा कि आप किसी अशान्त, 54 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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