________________
बेचैन, तनावग्रस्त व्यक्ति को वहाँ थोड़े समय के लिए बिठाएँगे तो उसे राहत अवश्य महसूस होगी। वहाँ ध्यान की, समाधि की, अहोभाव की, परम ज्योति की, परम-तत्त्व की ऊर्जा फैली हुई है। वहाँ जब भी बैठोगे तुम्हें तदाकार परम ज्योति स्वरूप की उपलब्धि होगी।
जानते हो लोग हिमालय पर साधना करने क्यों जाते हैं? वहाँ की जैसी शांति और नि:स्तब्धता तो आज के वैज्ञानिक युग में घरों में भी प्राप्त की जा सकती है। रिकॉर्डिंग स्टूडियो देखे हैं, जहाँ 'साउन्ड प्रुफ' दीवारें होती हैं। बाहर बम विस्फोट भी हो जाए, पर ध्वनि अन्दर न आ सकेगी। ऐसे ही कमरे तुम घरों में भी बनवा सकते हो जहाँ तुम एकाकी हो सको लेकिन फिर भी लोग हिमालय क्यों जाते हैं? हजारों किलोमीटर दूर वर्षों तक वहाँ साधना करने का क्या प्रयोजन? जब मैंने हिमालययात्रा गोमुख-गंगोत्री तक की, तब मैंने खोज की कि आखिर ऋषियों को यहाँ की गुफाओं तक आने की आवश्यकता क्यों हुई। मैंने पाया कि इसकी आवश्यकता थी, क्योंकि जिस गुफा में साधक साधना कर रहा है उस गुफा में न जाने कितने साधकों ने साधना करके उसे जीवन्त और ऊर्जस्वित किया है। कितने ऋषियों-संतों की ऊर्जा उस गुफा में समायी होती है। मैंने पाया कि एक कमरे में ध्यान करने की अपेक्षा हिमालय की गुफा में ध्यान करने पर ऊर्जा में त्वरित रूपान्तर होता है, ऊर्जा गतिमान होती है, विशिष्ट ऊर्जा उपलब्ध होती है। जैसे ही ध्यान में उतरते हो तो ऐसा लगता है कोई प्रकाश की आभा व्याप्त हो रही है, कोई ज्योतिर्मयता अन्तरंग में उतर रही है। __यूँ तो तुम बाहर कितना भी परमात्मा को खोजते रहो, कभी परमात्मा को न पा सकोगे। लेकिन एक ध्यानमय कक्ष की ऊर्जा तुम्हें तुम्हारे अन्तर में उतार सकेगी। वह कक्ष किसी मंदिर से कम न होगा। जो शांति तुम बाहर खोजते फिरते हो, वह तुम्हारे ही भीतर है। केवल देखने की आवश्यकता है। बाहर तुम चाहे जितना खोज लो, परमात्मा को न पा सकोगे। आन्तरिक विकृतियाँ अन्तस् में यथावत् बनी रहेंगी और तुम सांसारिक क्रिया-कलापों में उलझे सांसारिक प्राणी मात्र रह जाओगे। जीवन में कुछ उलब्ध नहीं कर पाओगे। एक कमरे में तुम जन्म लेते हो, उसी में अपना सारा जीवन गुजार देते हो । यहाँ तक कि प्राण-पखेरू भी उड़ जाते हैं फिर भी तुम कुछ उपलब्ध नहीं कर पाते। लेकिन ध्यान-साधना के द्वार में प्रवेश कर तुम उस कमरे को परमात्मा का मंदिर बना सकते हो। तुम्हारे ध्यान की ऊर्जा वहाँ पर शांति घटित कर सकेगी।
अपनी ऊर्जा को धीरे-धीरे विराट रूप देने का प्रयास करो, ताकि वह विस्तृत होती चली जाए। यदि अन्तस् में भय फँसा रहा, संकुचितता समाई रही तो कभी कुछ
| 55
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org