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उपलब्ध न कर पाओगे। वही राग-द्वेष के दायरों में फँसे रह जाओगे, कभी इनसे मुक्त न हो पाओगे।
जैन दर्शन में तीन मूल्यवान शब्द हैं । वे तीन शब्द हैं- राग, विराग और वीतराग। इन तीनों को बहुत गहराई से समझना। राग- इसका अर्थ है आसक्ति, विरागअनासक्ति और वीतराग- जिसमें न आसक्ति है न अनासक्ति । एक आत्म-साधक के लिए यह बहुत कीमती अर्थ है। राग अर्थात् तुम किसी से जुड़े हुए थे- धन से, अर्थ से, सम्पत्ति से, पद से, प्रतिष्ठा से, पत्नी से, परिवार से, सभी से आसक्ति और विराग अर्थात् अब तुम्हें उन सबके प्रति उपेक्षा हो गई जिनसे राग था और वीतराग का अर्थ है राग या विराग का भाव ही निकल गया। न अपेक्षा, न उपेक्षा। ___ संत कबीर के एक पुत्र था कमाल। बड़े कमाल का था। कबीर का बेटा था, इसीलिए कबीर चाहते थे कि कमाल भी उनके जैसा जीवन जीए। धन के प्रति कोई आसक्ति न रखे। लेकिन कमाल तो कमाल ही था। कोई धन-सम्पत्ति या अन्य वस्तुएँ लेकर आता तो कबीर लेने से इंकार कर देते। पर लोग वे चीजें कमाल को देते तो वह तुरन्त रख लेता। एक बार भी मना न करता। बिना पिता की परवाह किए सब स्वीकार कर लेता। फिर भी स्वयं को संत कहता । कबीर ने बहुत समझाया- तुम संत हो। तुम्हें धन से क्या सरोकार, तुम ये वस्तुएँ मत स्वीकारो। लेकिन कमाल कहता, मुझसे यह सब संभव नहीं है। मैं यह सब न कर सकूँगा, क्योंकि कल तक जिस तत्त्व के प्रति मेरा राग था आज उसी से घृणा करूँ- यह मुझसे न होगा। कल तक मैं जिसके पीछे भाग रहा था आज उसे छूने से भी इंकार करूँ- मैं यह नहीं कर सकता। ये तो मेरे मन में राग के प्रति द्वेष को पैदा करने वाले भाव हैं। आसक्ति को पैदा करने वाले भाव घृणा के भाव हो गए।
कबीर ने अपने बेटे कमाल को आखिर अपने घर से अलग कर दिया। उन्होंने कह दिया तेरी विचारधारा मुझसे नहीं मिलती, तू कोई साधु नहीं है, चला जा यहाँ से। कमाल ने अपनी दूसरी कुटिया बना ली। वहीं अलमस्ती से जीने लगा, फकीरी में मस्त रहने लगा।
एक दिन काशी नरेश वहाँ कबीर का दर्शन करने पहुंचे। वहाँ कमाल को न पाकर उन्होंने पछा, 'कमाल कहाँ है कबीर साहब!' कबीर ने कहा, 'अब वह साधु न रहा, उसे तो धन से मोह हो गया है, मैंने उसे अलग कर दिया है।' काशी नरेश ने सोचा कि जाकर उससे मिलना तो चाहिए। हो सकता है कि बाप-बेटे में न बनी हो और कबीर ऐसे ही..... । चलो चल कर देखना चाहिए। काशी नरेश ने सोचा, चलो जानूँ तो सही क्या बात है ! वे कमाल की कुटिया में
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