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न जग पाया। आपको पता है कि आदमी को कुछ समय के लिए अकेला छोड़ दो, तो वह तिलमिला उठेगा और पागल हो जायेगा।
आप एक प्रयोग करके देखें। किसी आदमी को अकेले कमरे में बंद कर दें। शुरुआती दौर में आप उसके लिए भोजन का प्रबंध करेंगे, पर वह खाने के लिए तैयार न होगा। वह उठाकर फेंक देगा भोजन को, पर धीरे-धीरे खाने लगेगा, पर जब कुछ माह बीत जाएँगे तो आप सोचेंगे कि अब तो वह अकेला बैठा-बैठा शांत हो गया होगा, लेकिन नहीं तुम ताज्जुब करोगे कि वह अपने आप से ही बातें करने लग गया है। शांत होने की बजाय उसका चित्त मुखर और वाचाल हो गया है। पहले वह भीड़ में था फिर भी कम बोला करता था, लेकिन अब जब वह अकेला हो गया है, तो अधिक पागलपन का भूत उस पर सवार हो गया और अपने आपसे ही बातें करने लग गया। अगर किसी बुद्धिमान को छ: माह के लिए कमरे में बंद कर दो, तो वह बुद्ध होकर बाहर निकलेगा और अगर किसी बुद्ध को बंद कर दो, तो वह पागल होकर बाहर निकलेगा।
एकांत हमारे जीवन को सार्थकता भी दे सकता है और निरर्थकता भी। अगर आप अपनी क्षमताओं का सार्थक उपयोग नहीं करते हैं, अपनी ऊर्जा को उचित दिशा नहीं देते हैं, तो आपको भीतर कुछ दिखाई न देगा। भीतर के भगवान को तो बिसरा बैठेंगे। हाँ, शैतानियत के काँटे भले ही पा सकते हो। कई लोग कहते हैं- साहब, जब भी आँख बंद करके बैठे तो सिवाय भीतर की पशुता के कुछ भी और दिखाई नहीं देता। अंधकार दिखाई देता है। लगता है भीतर नरक-सा वातावरण बन गया है, पर इतने मात्र से संकल्प को ढीला मत करो। भीतर में प्रारंभिक तौर पर जो पशुता के दर्शन होते हैं, इस पशुता को तुमने स्वयं उपार्जित किया है। पशुता के नीचे ही तो देवत्व छुपा है। उघाड़नी पड़ेगी अपनी पशुता, अन्यथा हम तलाश तो करते रहेंगे देवत्व की और देवत्व के नाम पर हमें सदैव पशुता के ही दर्शन होते रहेंगे।
पशुता आत्मा का स्वभाव नहीं, मन का स्वभाव है। चूँकि हमारे मन में पशुता समाई है, नरक का बसेरा है। जब भी भीतर झाँकते हो, पहला सम्पर्क मन से होता है और नतीजतन हम पशुता को छूकर वापस आ जाते हैं। परमात्मा न केवल शरीर के पार है, अपितु मन के भी पार है। इस मकान के तीन खंड हैं- शरीर, मन, आत्मा। तीन में से दो का स्पर्श तो हमने कर लिया है। हमारी पहुँच शरीर और मन तक रही है और तीसरा खंड अछूता रह गया है। जब तक उसका स्पर्श न कर पाओगे, अन्तर के अंतिम स्तर पर तुम्हारी पहुँच नहीं बन पायेगी। हम केन्द्र से तो च्युत हो जाएँगे और परिधि में ही भटकते रह जायेंगे। भला हम केंद्र से च्युत होकर सुख की तलाश करेंगे
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