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जाये तो हिलने देना और अनायास आँख खुल जाये तो खुलने देना। ध्यान के नाम पर शरीर के साथ कोई ज्यादती न करे। यहाँ जोर जबरदस्ती नहीं चलेगी। हाँ, इतना विवेक अवश्य रखना, शरीर हिल जाये तो हिल जाये, पर मन अडोल रहे। ध्यान शरीर को शांत या एकाग्र करने के लिए नहीं है, मन की शांति व अन्तर का आनन्द उपलब्ध करने के लिए है।
यह शिविर कोई प्रतियोगिता या प्रतिस्पर्धा नहीं है, वृत्तियों के विसर्जन का उपक्रम है। यहाँ वही कुछ अर्जित कर पायेगा, जो खोने के लिए तैयार है। अन्यथा मन का निर्मलीकरण न हुआ तो यह ध्यान-शिविर भी, इस शिविर में बरसने वाली अमृत की बूंदें - बस ऐसी हो जायेंगी जैसे किसी जहर सने पात्र में अमृत की बूंदें आकर जहर बन जाती हैं । शिविर में मेरा प्रयास अमृत को उपलब्ध कराना न होगा, वरन् अन्तर-धमनियों में फैल रहे जहर को बाहर निकालना होगा, जीवन में जितनी कलुषता पनप रही है, उसकी सफाई करना होगा। अब कोयलों पर तुम बाहर से कितनी ही सफेदी कर लो, पर उसका अंतर-अस्तित्व तो काला ही रहेगा। इसलिए ध्यान-शिविर वह अभियान है, जिसमें अमृत की बूंदें तो गिरेंगी, तब गिरेंगी, पर हमारी कोशिश विष को बाहर निकालने की रहेगी। आपके अन्तर-पात्र को साफसुथरा करने की रहेगी।
अब भला कैसे हम अध्यात्म के अमृत का स्पर्श कर पाएँगे, जब होंठों से हम परमात्मा की प्रार्थनाएँ कर रहे हैं, गीत और भजन गुनगुना रहे हैं, लेकिन हृदय से प्रार्थना नहीं उमड़ रही है, तो हृदयेश्वर तक हमारी पुकार कैसे पहुँचेगी? मैं तो कहूँगा मंदिर में प्रवेश करते समय तुम जितनी शरीर व वस्त्रों की शुद्धि का ध्यान रखते हो, कितना अच्छा होता अगर मनोशुद्धि का भी इतना ही लक्ष्य करके जाते। मात्र कपड़ों की, शरीर की उज्ज्वलता से क्या लाभ, अगर अंतर-अस्तित्व तुम्हारा उज्ज्वल न हो पाये। यह शिविर हमारी अन्तर-उज्ज्वलता को उपलब्ध कराने के लिए है।
मात्र होठों की प्रार्थनाएँ अध्यात्म के अमृत का रसास्वादन नहीं करा पाएँगी। आवश्यकता हृदयेश्वर से हृदय को जोड़ने की है, कल्याण केवल प्रार्थनाओं से नहीं होगा। जीवन का कल्याण केवल धूप खेने या चढावे से नहीं हो पायेगा। जीवन का कायाकल्प होगा आत्मजागरण से, अन्तर की संबोधि को उपलब्ध करने से। इस संबोधि को उपलब्ध करने के लिए हमें न किसी के आशीर्वाद की ज़रूरत है, न किसी के आलंबन की, आवश्यकता है अन्तर्यात्रा की। अपने मन को ही मंदिर का रूप देने की। न शरण हो, न अनुसरण हो। अगर हम महावीर या बुद्ध की पूजा ही करना चाहते हैं तो बात और है । यदि जीवन में महावीरत्व व बुद्धत्व को भी उपलब्ध
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