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ऊर्जा की सघनता
ऊर्जा का विस्तार ही जगत् है और ऊर्जा की सघनता ही जीवन है। जैसे-जैसे ऊर्जा बाहर विस्तार लेती जाती है वैसे-वैसे जगत का विस्तार होता है। जब ऊर्जा सघनता का रूप ले लेती है तब जीवन का निर्माण होता है। ऊर्जा ही वह तत्त्व है जिस पर सम्पूर्ण जीवन-जगत् टिका हुआ है। जगत का अस्तित्व ही ऊर्जा पर कायम है। जिस तत्त्व से पानी बह रहा है, अग्नि जल रही है, बादल चल रहे हैं, वृक्ष लहलहा रहे हैं, उस प्रत्येक तत्त्व का नाम ऊर्जा है।
तुम अपने शरीर के मूल स्रोत को देखना चाहो, जानना चाहो कि तुम्हारा मूल स्रोत क्या है तो पाओगे कि वह अणुरूप था। धीरे-धीरे उस अणुरूप ने विस्तार पाना शुरू किया। तब भी तुम अपने शरीर के अस्तित्व का मूल स्रोत जानना चाहोगे तो पता चलेगा कि वह स्रोत इतना छोटा है कि जितनी गंगोत्री की धार । जिन्होंने गंगोत्री की धार देखी है वे जानते हैं कि वह जब गोमुख से आती है अत्यंत संकुचित होती है लेकिन वही धार फैलते-फैलते गंगा के रूप में विस्तार पाते हुए सागर में विलीन होते-होते अत्यंत विराट हो जाती है। जब जीवन के गंगासागर के आदि स्रोत को ढूँढ़ने का प्रयास करोगे तो पता चलेगा कि इसका स्रोत भी गंगोत्री के गोमुख से अधिक बड़ा नहीं है।
तुम थोड़ा पीछे लौटो अपने जीवन में । आज तुम चालीस वर्ष के हो, उससे पहले तीस वर्ष के थे, कभी बीस के, दस के, पाँच के, एक वर्ष के, छ: मास के, एक महीने
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