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अपनी 'प्यास' को जगाये रखना । महावीर को याद करने का अर्थ महावीर की प्यास हमारे भीतर जग जाना है। अगर संकल्प दृढ़ रहा तो शिविर तुम्हारा बीज अंकुरित होने की भूमिका तैयार कर सकता है।
आज सुबह के ध्यान के बाद एक बहिन कह रही थी कि महाराजजी, अपूर्व आनन्द आया। आपने अद्भुत आनन्द बरसाया। मैंने कहा- ऐसा कुछ नहीं है । कोई आनन्द बरसाया नहीं गया है, तुम्हारे भीतर जो था वह जगना शुरू हो गया है। निर्झर के आगे पड़े पत्थर अब हटने लगे हैं और आज का आनन्द उसी की फुहार है ।
इसलिए संभव हो तो अपनी अन्तर - ज्योति को अवश्य जगा लेना । इस बात से सावधान रहना कि किसी दूसरे की ज्योति के सहारे पर ही अपने आपको न छोड़ देना । श्रम करना पड़ेगा, श्रमण होना पड़ेगा। जिन्होंने भी अब तक उपलब्ध किया, श्रम से उपलब्ध किया है, संकल्प से उपलब्ध किया है, धैर्य और ध्यान से उपलब्ध किया है। अब तक इस ज्योति को मृण्मय में ढूँढ़ते आए हैं, अगर उतर गये चिन्मय में तो वह ज्योति वहाँ प्रज्वलित ही है
अध्यात्म के समस्त मार्गों का मूल सत्य की खोज करना ही रहा है। अगर हम सत्य को उपलब्ध करना चाहते हैं, तो हमें सब कुछ छोड़कर अपने भीतर में प्रवेश करना होगा, अतीन्द्रिय होकर चेतना में प्रवेश करना होगा। इस ध्यान शिविर में आप अपनी चेतना के अंतिम स्वर का स्पर्श कर सकें, मेरा यह पूरा प्रयास होगा।
मेरे प्रभु, अन्तर्ज्ञान को उपलब्ध करने के लिए मेरे ये संकेत हवा की तरंगों में व्याप्त हो जाएँ, समुद्र की लहरों के साथ अनन्त तक पहुँच जाएँ, ताकि सारी दुनिया में ये अमृत की फुहारें, जो आपके अन्तरनिर्झर से उठ रही हैं, फैल सकें। प्रणाम उन सब दिव्य आत्माओं को, जिन्होंने चेतना के अन्तिम स्तर का, परिनिर्वाण का स्पर्श किया, उन्हें भी प्रणाम जिन्होंने आज उसका स्पर्श करने के लिए अपना एक पाँव आगे बढ़ाया है ।
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