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मूलक संबंध हैं वहाँ से उपरत होऊँगा।
व्यक्ति संसार में रहते हुए भी सम्यक्त्व-प्राप्त जीव की तरह रहे । वह संसार से स्वयं को ऐसे ही उपरत रखे जैसे धाय माता बच्चे का पालन-पोषण करती है लेकिन जानती है कि कुछ दिनों बाद इसे छोड़ देना होगा। पालन-पोषण को अपना धर्मकर्त्तव्य समझती है। जो व्यक्ति संसार में धाय की तरह अपना जीवन जी लेता है, कर्त्तव्य समझते हुए कि मैं संसार में, परिवार में रहता हूँ, उनके साथ जीता हूँ इसलिए उनका पालन-पोषण करना मेरा फर्ज है। अपने कर्तव्य का निर्वाह करते हुए अगर घर में हो, संसार में हो तो कीचड़ में भी कमल को खिला लोगे। संसार में संन्यास का कमल खिल जाए, तो यह अनासक्ति की पहल होगी। ___ मुक्ति के लिए अनासक्ति ही चाहिये। बाहर की आसक्ति हटे, तो ही भीतर की प्रविष्टि होगी। बाहर से भीतर - यही ध्यान है और भीतर का भीतर ही बने रहना समाधि है। ध्यान-शिविर भीतर की यात्रा के लिए है, अन्तरजगत् के आविष्कार के लिए है। मुक्ति की ओर कदम बढ़ाइये, मेरी शुभकामनाएँ आपके साथ हैं।
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