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क्या जीवन को देखने का ऐसा ढंग नहीं हो सकता? ऐसा आदमी कभी उदास, बोझिल या भारग्रस्त नहीं हो पायेगा । नकारात्मक आदमी सोचेगा, घोड़ा चोरी चला गया, बहुत बुरा हुआ। सकारात्मक सोचेगा । मैं बच गया, क्या यही कम है । हमारा जीवन हमें प्रफुल्लता भी दे सकता है और उदासी भी । आनन्द भी दे सकता है और दुःख भी । हमारे प्राणों को अंधकार से भी भर सकता है और हमें आलोक से सराबोर भी कर सकता है । यह तो हम पर निर्भर है कि हम जीवन को कहाँ से देखते हैं, कैसे देखते हैं। हम अपने जीवन का मूल्यांकन गंदे डबरों से करते हैं या चाँद-सितारों से करते हैं । सब कुछ हम पर निर्भर है ।
आज निराशा हमें चारों ओर से घेरती जा रही है। हकीकत में जीवन में आनन्द तभी फलित हो सकता है, जब व्यक्ति जीवन को आशावादी दृष्टि से देखे । निराशा से अगर फूलों को देखेंगे तो वे काँटे लगेंगे और आशा से, भीतर की प्रफुल्लता से, कहीं काँटों पर नजर डाली तो काँटों में भी फूल खिलते नजर आएँगे। वे लोग सचमुच जीवन में, छोटे-छोटे कंकरों में भी खुशी और प्रसन्नता के हीरे-मोती खोज लेते हैं, छोटे-छोटे कृत्य में भी सुबह से साँझ अद्भुत प्रफुल्लता पा लेते हैं। सचमुच, उन्हीं पर तो उतरती है परमात्मा के प्रसाद की किरणें ।
मेरा प्रयास रहेगा कि हम सुख और दुःख दोनों से अनासक्त हों । सुख और दुःख ये दोनों हम पर बाहर के प्रभाव हैं, ये कभी भीतर से नहीं उपजते, आनन्द हमेशा अन्तर् से उपजता है । जो व्यक्ति भीतर के आनन्द को उपलब्ध हो चुका है, वह भले ही राजमहल में सोये, चाहे झोपड़ी में, दोनों जगह एक-सा आनन्द होगा । चाहे फूलों की शय्या मिली या कंकरीली जमीन, एक में कृतज्ञता और एक में शिकायत, ऐसा नहीं होगा। वहाँ दोनों के लिए कृतज्ञता होगी। वही व्यक्ति तो ध्यानी है, जिसकी अन्तश्चेतना को सुख-दुःख से ऊपर आनन्द की उपलब्धि हो गयी है । और ऐसे व्यक्ति के लिए जीवन भी सुखमय होगा और मृत्यु भी ।
कहते हैं रोम में एक सम्राट ने किसी बात से नाराज होकर अपने ही वजीर को फाँसी की सजा दे दी। उस दिन वजीर का जन्म - दिवस था। घर पर भोज का आयोजन था। पूरा परिवार, सभी मित्र इकट्ठे थे। कई संगीतज्ञ, नर्तक और नर्तकियाँ भी पहुँची थीं ।
राजा की आज्ञा । दोपहर के दो बजे थे। सम्राट के सैनिकों ने नंगी तलवारों से वजीर के मकान को घेर लिया। भीतर आकर दूत ने खबर दी कि सम्राट का आदेश है, आज शाम सात बजे आपका कत्ल हो जायेगा ।
जहाँ नृत्य चल रहे थे, वहाँ छाती पीटी जाने लगी। नाचता हुआ घर अचानक
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