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स्वयं की বলা
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मनुष्यजाति का विकास सम्पूर्ण विश्व का विकास है। उसकी उन्नति और पतन सम्पूर्ण विश्व के उत्थान और पतन है। विश्व के ग्लोब में कौन-सा रंग कैसा है, यह बात गौण है। मुख्य तो यह है कि इस ग्लोब के भीतर जो मनुष्य अवतरित हो रहे हैं वे कैसे जी रहे हैं। जब हम अपने अतीत को देखते हैं, तो पाते हैं कि उसने मनुष्य के विकास की जितनी संभावनाएँ थीं, आज उसने अपने बौद्धिक और भौतिक स्तर पर बहुत कुछ पूरी भी कर लीं। __ यह मनुष्यजाति का सौभाग्य है कि पूरा विश्व सिमट कर घर के भीतर आ गया है। अमेरिका या अफ्रीका में कोई घटना घटती है तो हम उसे घर में बैठे देख सकते हैं। इस विकास की क्षमता पर हमें गौरव होना चाहिए। महाभारत में तो केवल एक घटना मिलती है जब धृतराष्ट्र महाभारत के युद्ध को देखने में सक्षम नहीं हैं और संजय महल में बैठे-बैठे ही उस घटनाक्रम को निहार लेता है और आँखों देखा हाल धृतराष्ट्र को सुनाता है। तब यह क्षमता केवल एक व्यक्ति, संजय के पास ही थी लेकिन आज प्रत्येक के पास यह क्षमता है। किसी समय में युद्ध की सूचनाएँ कई महीनों बाद पहँचती थीं। लेकिन आज विश्व के किसी भी हिस्से में युद्ध हो, तो यहाँ घर में बैठे ही उस युद्ध को देखा जा सकता है।
धीरे-धीरे मनुष्य की पहुँच का विकास होता जा रहा है। वह चाँद तक जा पहुँचा है। अन्तरिक्ष में यदि कोई ग्रह दूसरे ग्रह से टकराता है, तो कब किन क्षणों में
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