Book Title: Dhyan Yog Vidhi aur Vachan
Author(s): Lalitprabhsagar
Publisher: Jityasha Foundation

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Page 23
________________ अगर हमें कोई अच्छी बात लग रही है तो उसे कागज की डायरी की बजाए, आचरण की डायरी में नोट करने का प्रयास करें । उनको स्वयं में उतारने की कोशिश करें । I यह मनुष्य का अज्ञान है कि जो प्रत्यक्ष रूप में प्रकट है, वही उसे दिखाई देता है जो अप्रकट है, उसका निरीक्षण वह नहीं कर पाता है । जो प्रकट पर ठहर जाता है, वह अन्तर का स्पर्श नहीं कर पाता । भीतर की चेतना की सुवास को प्राप्त नहीं कर पाता और परिणामस्वरूप उसे लगता है कि मेरा जो कुछ है बाहर है, भीतर तो केवल अँधेरा है । जब तक अदृश्य का अर्थ नहीं जान पाते हैं, हम, तब तक भला हम उससे ताल्लुकात कैसे बैठा पायेंगे। अब लोगों के प्रश्नों को देखो। उनके भीतर की जिज्ञासाओं को देखो। कोई कहता है कि महावीर कब पैदा हुए? किससे शादी की ? उनका परिवार क्या है ? महावीर के दीक्षा ले लेने के बाद उनकी पत्नी का क्या हुआ ? अब एक व्यक्ति इतनी-सी खोज भर करने के लिए अपना पूरा समय लगा देता है । आप पूछो कि इससे उसे क्या मिलेगा! कल एक सज्जन पूछ रहे थे कि महावीर उम्र में बड़े थे या बुद्ध? अब इसका समाधान पाने से तुम्हें क्या मिलेगा? कोई फर्क नहीं पड़ेगा कि कौन छोटा था या कौन बड़ा? आत्म-चिंतन तो इस बात के लिए करो कि हम अपने जीवन में महावीर की अन्तर्दशा को उपलब्ध कर पाए हैं या नहीं कर पाए हैं। हम आदर्श पुरुषों के इतिहास के बारे में बहुत खोजबीन कर लेते हैं, पर उनके आदर्शों से अनभिज्ञ रह जाते हैं । यह निरीक्षण करो कि महावीर के जीवन में साधना कैसे घटित हुई? ध्यान कैसे उतरा ? किस विधि से उन्होंने चेतना की अंतिम स्थिति का स्पर्श किया? कैसे जीवन जीया कि उनका बीज वृक्ष बन गया ? हम नहीं समझ पाये महावीर की अन्तस् चेतना को । अगर अन्तस् चेतना को समझ लिया जाता है तो हम मात्र महावीर के अनुयायी ही नहीं, अपितु स्वयं महावीर हो सकते थे। हमारी छाया के नीचे भी हजारों लोगों को विश्राम मिल सकता था, लेकिन हम अपने आपको वहाँ तक न पहुँचा पाए । हमने महावीर के उपवासों की तो चर्चा की कि महावीर ने छः महीने उपवास किये, ऋषभदेव ने बारह महीनों तक उपवास किये, पर हम न तो इसका चिंतन कर पाए और न ही जिक्र कर पाए कि इन उपवासों की मूलात्मा क्या थी? महावीर का उद्देश्य मात्र भूखे रहने का नहीं था । आत्मवास करना उनका उद्देश्य था । हम चरित्र लिखते समय आत्मवास को भूल गये । हमें उनके उपवास दिखाई दिये, उनकी अन्तस्- चेतना दिखाई न दी। इसका परिणाम यह निकला कि हमने महावीर के बाह्य व्यक्तित्व का तो जिक्र कर लिया पर आन्तरिक व्यक्तित्व, भीतर के वैभव से 22 | Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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