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कठिन है ।
आखिर सिकंदर ने पता लगाया एक संन्यासी का । उसने सिपाही भेजे और कहा कि उसे पकड़कर ले आओ । सिपाही पहुँचे फकीर के पास और कहा- सिकंदर महान् का आदेश है कि आप हमारे साथ चलें ।
फकीर हँसने लगा। उसने कहा- जो खुद को महान् समझ रहा है, उससे बढ़कर समझ कौन हो सकता है। कौन है वह सिकंदर, जो अपने आपको महान् कहता है ? सिपाही एक क्षण तो सकपका गये कि दुनिया में अभी तक कोई व्यक्ति ऐसा नहीं हुआ जो सिकंदर की महानता पर प्रश्नचिन्ह लगा सके। यह नंगा फकीर सिकंदर की महानता का उपहास कर रहा है। उन सिपाहियों ने कहा- तुमने अगर इस तरह बात की तो हम तुम्हारी गर्दन धड़ से अलग कर देंगे। फकीर मुस्कराया, कहा- तुम क्या काटोगे मेरी गर्दन को ! मैं तो बहुत पहले इससे अलग हो चुका हूँ। तुम जाओ, अपने मालिक को बुला लाओ। हम तुम्हारे मालिक से ही बात करेंगे ।
सिपाही गये सिकंदर के पास और जाकर सारी बात बताई। कहा कि गजब का फकीर है। हमारा वश उस पर नहीं चलेगा । हम किसी को तलवार से भयभीत कर सकते हैं और वह आदमी तो मृत्यु से तनिक भी नहीं डरता ।
सिकंदर खुद गया। उसने जाते ही अपनी तलवार उस फकीर की गर्दन पर रख दी और कहा कि चलते हो या गर्दन अलग कर दूँ । फकीर ने कहा- अगर कर सकते हो तो गर्दन को ही अलग कर दो। बड़ा मजा आयेगा कि तुम और मैं दोनों गर्दन को गिरते देखेंगे ।
सिकंदर ने कौतूहल से पूछा- तुम भी देखोगे गर्दन कटते हुए! फकीर ने कहाहाँ, मैं भी देखूँगा। क्योंकि अब यह गर्दन 'मैं' नहीं हूँ। जब से यह सत्य मैंने जाना है तब से कोई भी सिकंदर या सिकंदर की तलवार मुझे डरा नहीं सकती। तुम अपनी तलवार को म्यान में रख दो और शांति से जीवन जीओ।
कहते हैं कि सिकंदर के जीवन में यह पहला मौका था, जब किसी के कठोर शब्दों को सुनकर भी उसने अपनी तलवार भीतर रख दी। भला जिसे यह बोध हो चुका है कि शरीर और आत्मा दोनों भिन्न-भिन्न हैं, उसे दुनिया की कोई तलवार कैसे डरा सकती है।
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जीवन में जहाँ ऐसा तादात्म्य-भाव टूट जाता है, वहाँ दुःख समाप्त हो जाता है दुःख तादात्म्य के कारण पैदा होता है। जिसका तादात्म्य-भाव समाप्त हो गया, दुःख उससे अपने आप छिटक जाते हैं। हम देह-भाव में जीते रहते हैं। नतीजतन हमारी नजरें केवल वहीं तक जाकर सीमित रह जाती हैं । हम पहचान नहीं पाते कि देह के
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