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थी, समाचार-पत्र पढ़कर वही दुःख का कारण बन गई। इसलिए सुख और दुःख उसी व्यक्ति को घेर पाते हैं, जो बहिर्मुखी है, बाहर की वृत्तियों में जीता है।
यह ध्यान-शिविर शरीर और मन के पार पहँचकर आत्मानंद को उपलब्ध करने के लिए है। कोरे अच्छे विचारों को पालने से जीवन का कायाकल्प नहीं हो सकता। हम केवल बाह्य विचारों में जीते रह गये, तो अच्छे विचारक तो बन जायेंगे, पर अपने स्वभाव से, अन्तस् चेतना की सुवास से फिर भी विलग ही रह जायेंगे।
तथागत बुद्ध के बारे में कहते हैं कि वे यात्रा कर रहे थे। किसी आदमी के पाँव में कील गड़ गई। बुद्ध उसे निकालने लगे। उसने कहा- मैं कील पीछे निकलाऊँगा, पहले यह बताओ कि यह कील किसने गड़ायी। यह विषैली है या नहीं? बुद्ध ने कहा- वत्स, अपनी तार्किक बुद्धि तो पीछे लगा लेना, पहले कील निकलवा लो, पीछे विचार करते रहेंगे किसने गड़ायी, क्यों गड़ायी।
हमारी खोज मात्र विचारों तक ही सीमित न रहे, उससे भी ऊपर होनी चाहिए। हमारी खोज काँटे से छुटकारे की खोज हो, जीवन-मुक्ति की खोज हो। अगर हम सोचते हैं कि परभाव में जीकर हम मुक्ति पा सकेंगे या दुनियादारी में उलझकर आनन्द पा सकेंगे, तो यह हमारी भूल है।
दुःख के हजार निमित्त हैं। एक निमित्त को दूर करोगे, दूसरे का पीछा हो जायेगा। इस तरह तुम जिंदगी भर एक-एक निमित्त को दूर करते रहोगे, पर तुम्हें दुःख से मुक्ति नहीं मिल पाएगी। इसलिए हमें तलाश करनी है उस उत्स की, मूल कारण की, जहाँ से सारे दुःख उत्पन्न होते हैं। अगर तुम अन्तर्दृष्टि को उपलब्ध कर लो, तो तुम्हें पता लगेगा कि दुःख का मूल कारण आत्मा का शरीर और मन के प्रति तादात्म्य-भाव का जुड़ना है। जिस दिन तादात्म्य-भाव समाप्त हो जाये, उस दिन मृत्यु का भय छूट जायेगा। जीवन के सुख-दुःख छूट जायेंगे, हम निजानंद लीन हो जाएँगे।
कहते हैं सिकंदर जब विश्व-विजय पाने यूनान से रवाना हुआ तो कुछ आध्यात्मिक मित्रों ने बताया कि अगर विश्व-विजय यात्रा के दौरान तुम्हारा भारत जाना हो, तो वहाँ से तुम्हारी जो इच्छा हो ले लेना, पर एक संन्यासी को अवश्य साथ लेते आना। सिकंदर भारत पहुँचा और विजय प्राप्ति के बाद जब वापस जाने की तैयारी करने लगा, तो उसे अपने मित्रों की वह बात याद आई कि भारत से लौटते वक्त किसी संन्यासी को लेते आना। जहाँ वह ठहरा था, उसके निकटवर्ती गाँव में खबर की कि कोई संन्यासी हो तो उसे मैं ले जाना चाहता हूँ। गाँव के लोगों ने कहा- काफी कठिन काम है। यहाँ संन्यासी तो है, लेकिन उन्हें यूनान ले जाना काफी
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