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धन्य-चरित्र/8
उसने कहा- " - "मुझे उतनी भूख नहीं है। अतः मैं देखती हूँ ।" बार-बार मना करने पर भी वह नहीं मानी, क्योंकि
स्त्रियाँ हठो दुर्वारः ।
अर्थात् स्त्री-हठ का निवारण करना बहुत मुश्किल है ।
श्रेष्ठी के मन में तो अधीरता थी कि अभी यह पूत्कार करेगी। पर जब उसकी पत्नी ने कोथली खोलकर देखा, तो दिशा - विदिशा में उद्योत करनेवाले अपरिमित मूल्यवाले रत्नों को देखा। देखकर चमत्कृत होती हुई वह अपने पति को कहने लगी- "स्वामी! मैंने सत्य ही कहा था कि जाओ - जाओ । आपके गमन - मात्र की ही अन्तराय थी। वहाँ जाने पर आपको कुछ भी माँगना नहीं पड़ा होगा। जिस दिन आप वहाँ पहुँचे, उसी दिन मेरे पिता ने रत्नों से भरकर यह थैली आपको दे दी होगी।”
यह सुनकर भोजन करता हुआ वह श्रेष्ठी विचार करने लगा - यह भोली रत्न व पाषाण का भेद क्या जाने? पंचवर्णी पाषाणों को देखकर अज्ञानता के कारण रत्न के भ्रम में पड़ गयी है । उसके द्वारा बार-बार माता - पिता का गुण - गान किये जाने पर श्रेष्ठी ने कहा—“क्या मूर्ख की तरह प्रलाप करती हो? तुम्हारे पिता ने जो दिया, वह तो मेरा चित्त जानता है और अब तुम भी जानोगी। अतः चुप हो जाओ ।"
तब उसने विचार किया - " अहो ! मेरे पति निष्ठुर है। मेरे पिता ने अपार धन दिया, तो भी उनका गुण नहीं मानते हैं ।"
इस प्रकार विचार कर पुनः बोलने लगी- "स्वामी! ये अमूल्य रत्न बिना प्रार्थना किये मेरे पिता ने आपको दिये हैं, फिर भी आप कहते हैं कि तेरे पिता ने क्या दिया? इतना तो राजा भी प्रसन्न होने पर नहीं देता । अतः लोक में जो सुना जाता है, वह सत्य ही है
जामाता यमश्च न कदापि तृप्यति ।
अर्थात् जँवायी तथा यम कभी भी तृप्त नहीं होते ।"
पत्नी के बार-बार बोलने पर वह उठकर पत्नी के पास जाकर बोला- "हे मुग्धे! क्यों व्यर्थ की बकवास करती हो? तुम्हारे पिता के दिये हुए कौन से रत्न उद्योत करते हैं, जिससे कि तुम्हारे पिता का औदार्य देखूँ?"
उसने कहा—“आइए ! देखिए । इस कक्ष को कौन उद्योतित कर रहा है? रत्न - काँति के द्वारा तो यह घर स्वयं ही उद्योतित है ।" इस प्रकार कहकर अपने पति का हाथ पकड़कर ओरड़े में ले गयी । आप ही देखिए । हम दोनों में अज्ञ कौन
है?
इस प्रकार पत्नी के वचनों को सुनकर अपवरक में जाकर देखा, तो रत्नों द्वारा अपनी-अपनी काँति से विचित्र घर को देखकर चमत्कृत चित्तवाला श्रेष्ठी विचार करने लगा–“ये अदृष्ट - पूर्व रत्न कहाँ से आये ? क्या यह सत्य है या मैं स्वप्न देखता