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जैन धर्म एवं प्राचार
(पृष्ठ १-१५२)
१. सम्पादकीय
डॉ. दामोदर शास्त्री २. जैन साधना में ध्यान : स्वरूप और दर्शन
श्री देवेन्द्र मुनि शास्त्री ३. जम्बूद्वीप : एक अध्ययन
आर्यिका ज्ञानमती माताजी ४. परमसिद्धि का चरम सोपान : दिगम्बरत्व
डॉ० ज्योतिप्रसाद जैन ५. जैन श्रमण-परम्परा का धर्म-दर्शन
पं० फूलचन्द्र सिद्धान्तशास्त्री ६. श्रमण कौन ?
डॉ० पन्नालाल जैन साहित्याचार्य ७. जीवदया का विश्लेषण
पं० वंशीधर व्याकरणाचार्य ८. सम्यक् चारित्र
पं० बालचन्द्र सिद्धान्तशास्त्री ९. जैन शासन
पं० नरेन्द्रकुमार न्यायतीर्थ १०. जैन साधना-पद्धति अर्थात् श्रावक की ११ प्रतिमाएं
ब्र० विद्युल्लता शाह ११. Five Controlling Factors : A Unity Amidst Varieties Prof. Mahesh Tiwari १२. Jainism : Symbol of Emergence of New Era Dr. Sangha Sena १३. Jaina Ethical Theory
Dr. Kamal Chand Sogani १४. The Jaina Value of Life
Dr. Ramjee Singh १५. Abandonment of Passions in Jainism
Dr. B.K. Sahay १६. Jain Concept of Ahimsa
Dr. P.M. Upadhye १७. अहिंसा का स्वरूप और महत्त्व
डॉ. चन्द्रनारायण मिश्र १८. जैनधर्म : करुणा की एक अजस्र धारा
श्री सुमतप्रसाद जैन १६. सुगत-शासन में अहिंसा
प्रो० उमाशंकर व्यास २०. जैन दर्शन में अहिंसा
श्री सुनीलकुमार जैन २१. श्रमण-संस्कृति का युगपुरुष 'हिरण्यगर्भ'
डॉ. हरीन्द्रभूषण जैन २२. भगवान् महावीर का जीवन-दर्शन
श्री नीरज जैन २३. व्यावहारिक जैन प्रतिमानों की आधुनिक प्रासंगिकता डॉ० ल० के० ओड २४. जैन धर्म के नैतिक अमोघ अस्त्र
डॉ० उमा शुक्ल २५ अनेकान्तात्मक प्रवचन की आवश्यकता
डॉ० रतनचन्द्र जैन २६. जैन योग-परम्परा में क्लेश-मीमांसा
कु० अरुणा आनन्द २७. कल्याणकों में ज्ञान कल्याणक
डॉ कन्छेदीलाल जैन २८. उत्तम ब्रह्मचर्य : मोक्षमार्ग का अन्तिम चरण
श्री प्रतापचन्द्र जैन २६. जैन धर्मशास्त्रों और आधुनिक विज्ञान के आलोक में पृथ्वी डॉ० दामोदर शास्त्री
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आचार्यरत्न श्री देशभूषण जी महाराज अभिनन्दन ग्रन्थ
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