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नेका है, कि- जैनटिपपणा में तीसरे वर्ष में महीना बढता था उसको गिनती में लेते थे और जैन टिप्पणा में ज्यादे में ज्यादे३६घटिका प्रमाणे दिनमान होताथा, तथा कमती में कमती २४ घटिकाप्रमाणे दिनमान होताथा. और माघ महीने दक्षिणायनसे सूर्य उत्तरायनमें होताथा और श्रावणमहीने उत्तरायनसे दक्षिणायनमें होताथा और श्रावण वदि एकमसे ६२ वीं तिथि क्षय होतथी. इसीप्रकार १ वर्षमें ६ तिथि क्षय होती थी बीच में कोई भीतिथि क्षयनहीं होती थी. और तिथि बढ़ने कातो सर्वथा अभाव होने से कोईभीतिथि बढतीनहीं थी और ६० घडीसेकम तिथिकाप्रमाण होनेसे, ६० घडीके ऊपर कोई भी तिथि नहीं होतीथी. और नक्षत्र संवत्सर, ऋतुसंवत्सर, सूर्य संवत्सर, चंद्रसं वत्सर और अभिवर्द्धितसंवत्सर सहित पांचवर्षका १ युग, व ८८ ग्रह मानतेथे इत्यादि अनेक बातें जैन टिप्पणा में होती थी वो जैन टिप्पणा परंपरागत जैनी राजा देशभर में चलाते थे और पूर्वगत आमनाय से गुरुगम्यता से जैन कुलगुरु बनाते थे. इसलिये उसमे ग्रहणादि किसी तरहका फरक नहीं पडताथा. मगर परंपरागत जैनी राजाओंका व पूर्वगत आम्नायका अभाव हुआ जबसे ८८ ग्रहवाला जैन पंचांग बंध हुआ. तबसे जैन समाजमै ९ ग्रहवाला लौकिक टिप्पणा मानने की प्रवृत्ति शुरू हुई. उसमें श्रावण व माघमे दक्षिणायनमें व उत्तरायन में सूर्य होनेका नियम न रहा और हरेक महीने बढने से ज्येष्ट-- आषाढ व मार्गशीर्ष पौषादिमे दक्षिणायन व उत्तरायन होनेलगा. तथा क्षेत्रफल व गणित विभाग में फेर पडने से ज्यादेमे ज्यादे ३४ घाटका, व कमती में कमती २६ घटीकाप्रमाणे दिनमानभी मानने लगे और एक तिथिका ६० घटिकासे ज्यादे प्रमाण मानने से हरेकपक्ष में तिथियों का क्षयभी होनेलगा. और हरक तिथियोंकी वृद्धि होनेसे दो दो तिथियैभी होने लगी. और१२वर्षका युग इत्यादि अनेक बातें जैन पंचांगके अमावसे लौकिक टिप्पणाकी माननी पडती हैं, इसीतरह अधिक महीनाभी लौकिक रीतिसे वर्तमान में मानना पड़ता है, इसलिये ८४ गच्छोंके सबी पूर्वाचार्यों में श्रावण भाद्रपदादिमहीनें लौकिक टिप्पणामुजब माने हैं. वोही प्रवृत्ति सबजैन समाजमें शुरू है । और दक्षिणायन, उत्तरायन, तिथिकी हानी वृद्धि वगैरह तिथि, वार, नक्षत्र, पक्ष, मास, वर्ष सब लौकिक टिप्पणामुजब मानना मगर अधिक महीना बाबत जैनपंचांगकी आड लेकर नहीं मानना यह न्याय युक्ति बाधक होनेसे
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